मानव मानव पर मलते हैं,
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,
मिलकर बंधुत्व उठाते हैं।
सोनजही की बाड़,बाँधकर,
किसलय क़समों-वादों की ।
नीर बहा दे नयनों से कुछ,
बिछुड़ी निर्मल यादों की।
बहका मन बेटों के उसका,
कहकर फूल थमातें हैं ।
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,
मिलकर बंधुत्व उठाते हैं ।
नाज़ुक दौर दर्द असहनीय,
मरहम मधु वाणी का दे ।
जली देह अपनों के हाथों,
कंबल मानवता का दे।
अहंकार गरल बोध मन का,
अंतर द्वेष मिटाते हैं ।
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,
मिलकर बंधुत्त्व उठाते हैं।
कुछ रंग अबीर का प्रीत से,
मानव मानव पर मलते हैं,
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,
मिलकर बंधुत्व उठाते हैं।
© अनीता सैनी
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहोलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
हटाएंबहुत बढ़िया 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मुझे चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंअहंकार गरल बोध मन का,
जवाब देंहटाएंअंतर द्वेष मिटाते हैं ।
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,
मिलकर बंधुत्त्व उठाते हैं।
सचमुच दिल्ली बेहाल है....कभी दंगाई हमले कभी कोरोना भय कभी कुछ और दिल्ली बेचारी हमेशा झेलती ही रहती है ....।
कल्याणकारी भावों से सजी लाजवाब प्रस्तुति
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
सामायिक विसंगतियों पर सार्थक प्रहार करती चिंतन परक रचना।
जवाब देंहटाएंअनुपम सुंदर।
सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाएँ रखे.
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार बहना
हटाएंकाश जो हुआ न होता ... पर शायद नियति को रोकना आसान नहि ... हाँ भविष्य में अगर इन पंक्तियों का सहारा ले कर इंसान समझ सके तो बेहतर दिल्ली हो सकती है ... आशा पूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंसामायिक विसंगतियों पर चिंतन परक रचना।
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