घिरी होती हैं वे ज़िम्मेदारियों से,
गिरती-उठती स्वयं ही सँजोती हैं आत्मबल,
भूल जाती हैं तीज-त्योहार पर संवरना।
सूखे चेहरे पर पथरायी आँखों से,
दे रही होती हैं वे अनगिनत प्रश्नों के उत्तर,
वर्जनाओं के नाम पर मनाही होती है उन्हें,
खिलखिलाकर हँसते हुए करना ख़ुशी का इज़हार।
अकेली औरतें दौड़ती रहती हैं ता-उम्र अकेली ही,
क्योंकि समाज को नज़र नहीं आते उनमें मृदुल संस्कार,
फिर भी ओढ़े रहतीं हैं वे ख़ुद्दारी की महीन चादर,
सीखती हैं एक नया सबक़ ख़ुद को करने सुढृढ़।
अन्य औरतें इतराती हुईं सुनाती हैं ,
इन्हें पति-परिवार के अनगिनत क़िस्से-कहानियाँ,
अनायास उभर आता इनका भी प्रेम,
परंतु पीड़ा छिपाने में होती है इन्हें महारत हासिल।
अकेली औरतें सहारा देती हैं अपने ही जैसी,
अनगिनत अकेली औरतों को,
तब अकेली औरतें अकेली कहाँ होतीं हैं,
वे बीनने लगती हैं अपने ही जैसी औरतों के दुःख-दर्द।
समाज की हेयदृष्टि के सहती है तीखे तीर,
संयम से सह समझकर मानती उसे वक़्त की तासीर,
वे इन्हें जमा करती हैं दिल के तहख़ाने में,
और तह-दर-तह उठती सतह पर खड़े हो,
मन ही मन मुस्कराते हुए कहती हैं नहीं वह मज़बूर।
समाज की हेयदृष्टि के सहती है तीखे तीर,
संयम से सह समझकर मानती उसे वक़्त की तासीर,
वे इन्हें जमा करती हैं दिल के तहख़ाने में,
और तह-दर-तह उठती सतह पर खड़े हो,
मन ही मन मुस्कराते हुए कहती हैं नहीं वह मज़बूर।
अकेली औरतें अकेली कहाँ होती हैं,
घिरी होती हैं वे ज़िम्मेदारियों से,
गिरती-उठती स्वयं ही सँजोती हैं आत्मबल,
भूल जाती हैं तीज-त्योहार पर संवरना।
©अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
वाह क्या खूब बेहतरीन,लाजवाब,भावपूर्ण सृजन प्रिय अनु।
जवाब देंहटाएंऔरत का हर रुप प्रकृति का अनमोल उपहार है सृष्टि के लिए। घर,परिवार,समाज में अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हर दिन अपने व्यक्तित्व की नयी परिभाषा गढ़ती है।
सादर आभार प्रिय श्वेता दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. स्नेह सानिध्य बनाये रखे.
हटाएंसादर
सबके साथ होती है लेकिन अकेले अपने दम पर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
ओढ़े रहतीं हैं वे ख़ुद्दारी की महीन चादर,
जवाब देंहटाएंसीखती हैं एक नया सबक़ ख़ुद को करने सुढृढ़।
बेहतरीन और बस बेहतरीन सृजन.... लिखती रहिए ...बहुत बहुत सुन्दर सृजन के लिए ।
सादर आभार आदरणीय मीना दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. स्नेह यों ही बनाये रखे.
हटाएंसादर स्नेह
वाह!प्रिय सखी ,बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंओढे रहती हैं खुद्दारी की महीन चादर ,
सीखती हैं एक नया सबक ।
बेहतरीन सखी ।
सादर आभार आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. अपना स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और मार्मिक
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8 -3-2020 ) को " अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस " (चर्चाअंक -3634) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी जी मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
वाह बेहद शानदार सृजन 👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
सिहर कर रह गयी,अकेली औरत की वेदना से ,
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी ने इसे जीवंत कर दिया ,
सादर आभार सखी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएं
जवाब देंहटाएंनारीत्व की महिमा के संदर्भ में कहा गया है कि नारी प्रेम ,सेवा एवं उत्सर्ग भाव द्वारा पुरुष पर शासन करने में समर्थ है। वह एक कुशल वास्तुकार है, जो मानव में कर्तव्य के बीज अंकुरित कर देती है। यह नारी ही है जिसमें पत्नीत्व, मातृत्व ,गृहिणीतत्व और भी अनेक गुण विद्यमान हैं। इन्हीं सब अनगिनत पदार्थों के मिश्रण ने उसे इतना सुंदर रूप प्रदान कर देवी का पद दिया है। हाँ ,और वह अन्याय के विरुद्ध पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष से भी पीछे नहीं हटती है। अतः वह क्रांति की ज्वाला भी है।नारी वह शक्ति है जिसमें आत्मसात करने से पुरुष की रिक्तता समाप्त हो जाती है।
सृष्टि की उत्पादिनी की शक्ति को मेरा नमन।
बहुत ही सुंदर और सराहनीय विचार आदरणीय शशि भाई. उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंसादर
अन्य औरतें इतराती हुईं सुनाती हैं ,
जवाब देंहटाएंइन्हें पति-परिवार के अनगिनत क़िस्से-कहानियाँ,
अनायास उभर आता इनका भी प्रेम,
परंतु पीड़ा छिपाने में होती है इन्हें महारत हासिल
अकेली औरतों का दर्द बखूबी बयां कर दिया आपने
ये भी सही है वे अकेली होती कहाँ हैं ....
अकेली होना ही चाहती कहाँ हैं औरतें ...रिश्तों और जिम्मेदारियों में ताउम्र बंधना चाहती हैं पर मजबूरन कभी नहीं मिलता साथ तो समाज जीने कहाँ देता है इन्हें चैन से.....
बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने
खुद्दारी की महीन चादर ओढ़ी औरतों की खुद्दारी भी घमण्ड दिखती है लोगों को....
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन
वाह!!!
सादर आभार आदरणीय दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाएँ रखे.
हटाएंसादर
बेहद हृदयस्पर्शी रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार बहना
हटाएंबहुत ख़ूब ... परिपक्व लेखन ...
जवाब देंहटाएंसच है औरतें अकेली कहाँ होती हैं ... दुनिया की हर ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर रहती है ...
अपना जीवन कहाँ जी पाती हैं ... दूसरों के लिए जीने से उसे फ़ुरसत कहाँ रहती है ...
बहुत ही कमाल की रचना है ... दिल में उतर कर लिखी हुई ...
सादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनायें रखे.
सादर
... खूब बेहतरीन,लाजवाब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर आभार
अपने कंधे पर जब खुद के सर का झुका पाया..
जवाब देंहटाएंढूंढ ली दुनिया हमने ..पहली बार जब खुद के लिए मुस्कुराया..
आपको समर्पित..
बहुत ही सुंदर प्रिय...दिल से आभार।
हटाएंहमेशा ख़ुश रहे स्वस्थ रहे।
सादर