मध्य अप्रैल 2020 का दर्द,
मृगतृष्णा-सा उभर आया।
पीले पत्तों-से झड़ते मानव,
पतझड़ की पीड़ा न समझ पाए।
गंधहीन तिरोहित द्रव्य,
दिमाग़ की सतह पर फिसल आया।
झाड़ू से झड़ते दिखे इंसान,
योग से जगाते इंसानीयत,
साँसों के मोहताज नज़र आए।
समय की फुफकार से घायल,
विचलित महाशक्ति नज़र आई।
दफ़नाने की किल्लत से हैरान,
समंदर के बहाव में शव नज़र आए।
©अनीता सैनी
महामारी का यह दर्द व अन्तहीन पीड़ा, वस्तुतः असहनीय है। अन्तिम क्रियाकर्म को तरसते देह...एक विभीषिका के द्योतक है।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आदरणीया अनीता जी।
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
वैश्विक महामारी से प्रभावित विश्व की सम्पूर्ण मानव जाति की विवशता और दर्द छलक आया आपके सृजन में ।ईश्वर से प्रार्थना कि वह इस भीषण प्रकोप से समस्त जीव जगत की रक्षा करे ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
मार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंमैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग
जवाब देंहटाएंpurushottamjeevankalash.blogspot.com
या मेरे WhatsApp/ Contact No.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
आप मेरे ब्लॉग पर आएं, मुझे खुशी होगी। स्वागत है आपका ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
हटाएंसत्य दहला देने वाला ,पर सचमुच ऐसी ही भयावहता फैली है, विश्व में ।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन हृदय स्पर्शी।
सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
सादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-04-2020) को 'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
इस वैश्विक महामारी और और विश्वभर में मौतों के आँकड़े सचमुच दिल दहला रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंसमय की फुफकार से घायल,
विचलित महाशक्ति नज़र आई।
दफ़नाने की किल्लत से हैरान,
समंदर के बहाव में शव नज़र आए
बहुत ही सटीक हृदयस्पर्शी सृजन।
सादर आभार आदरणीया दीदी स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंसादर