मरूभूमि की गहराई और उसकी विशेषताओं के लिए नवीन उपमानों से सजी शब्दावली के प्रयोग से चिन्तन को गहनता और जीवन्तता प्रदान की है आपने .बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी .
मरुस्थल का मानवीकरण करती ख़ूबसूरत बिम्बों और प्रतीकों से के साथ भावप्रवणता से ओतप्रोत अभिव्यक्ति। प्रस्तुत अभिव्यक्ति पाठक को बचपन के सुखद पलों में ले जाती है हुए गहरे एहसासात के समंदर में डुबो देती है। मौलिक चिंतनयुक्त सृजन रस मर्मज्ञ पाठक को अवश्य प्रभावित करता है।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -4 -2020 ) को शब्द-सृजन-१७ " मरुस्थल " (चर्चा अंक-3676) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीय दीदी चर्चा पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
मरूभूमि की गहराई और उसकी विशेषताओं के लिए नवीन उपमानों से सजी शब्दावली के प्रयोग से चिन्तन को गहनता और जीवन्तता प्रदान की है आपने .बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी .
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाने हेतु. आपकी समीक्षा से बहुत सँबल मिलता है.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
अद्भुत सृजन !नव व्यंजनाओं के साथ शानदार शब्द चयन ।
जवाब देंहटाएंअभिनव अनुपम।
सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी जी मनोबल बढ़ाने हेतु. आपके स्नेह की सदैव आभारी रहूँगी.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
वाह!सखी अनीता जी ,सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंसादर आभार प्रिय सखी बहुत बहुत आभारी हूँ
हटाएंसादर
बहुत खूब 👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया नितु दी
हटाएंअनुपम
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु.
हटाएंसादर
मरुस्थल पर सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु.
हटाएंसादर
बेहद उत्कृष्ट लेखन ... बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु.
हटाएंसादर
उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
मरुस्थल का मानवीकरण करती ख़ूबसूरत बिम्बों और प्रतीकों से के साथ भावप्रवणता से ओतप्रोत अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत अभिव्यक्ति पाठक को बचपन के सुखद पलों में ले जाती है हुए गहरे एहसासात के समंदर में डुबो देती है। मौलिक चिंतनयुक्त सृजन रस मर्मज्ञ पाठक को अवश्य प्रभावित करता है।
ले जाती है हुए = ले जाते हुए
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