बहुत ही बीमार,
तुम्हारी धमनियों से,
रिस रहा था डाह।
अज्ञानी थे,
या खड़ा था साथ,
तुम्हारे अहंकार,
जब कर रहे थे तुम,
द्वेष की जुगाली,
सीख-समझाइश पर,
अहर्निश कर रहे थे,
रह-रह कर रुदाली।
सीख-समझाइश पर,
अहर्निश कर रहे थे,
रह-रह कर रुदाली।
शारीरिक रुप से,
नहीं थे तुम बीमार,
उस वक़्त तुम अपनी ही,
मानसिकता की थे,
गिरफ़्त में,
गिरफ़्त में,
चारों तरफ़ मच रहा था,
मौत का कोहराम,
और तुम थूक रहे थे,
अपनी अस्मत पर,
गली-मोहल्ले और घरों पर,
या स्वयं के विवेक पर।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत खूब प्रिय अनीता | इंसानियत के शत्रुओं पर सटीक कटाक्ष | अपने विवेक पर थूकते ये कुत्सित मानसिकता वाले लोग इंसानियत के नाम पर कलंक है | धारदार मारक व्यंग और सधी शैली बहुत प्रभावी है | | बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया रेणु दीदी सुन्दर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
सही कहा मानसिक बीमार हैं यें और अपनी ही अस्मिता और अपने ही विवेक पर थूक रहे हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब व्यंग काव्य
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (17-04-2020) को "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?" (चर्चा अंक-3674) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु
हटाएंसादर
आपने सही कहा अनीता जी जब पूरा देश इस भयावह वायरस से जूझ रहा है और कुछ लोगों की मानसिकता की वजह से प्रशासन को काफ़ी दिकक्तों का सामना करना पड़ रहा है | ना जाने कब समझेंगे ये लोग |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सारगर्भित समीक्षा हेतु तहे दिल से आभार आपका.
हटाएंयूँ ही साथ बना रहे.
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूब अनीता बहन ,सत्य कहा ये विवेकहीन खुद पर ही थूक रहे हैं ,बेहतरीन सृजन ,सादर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी सुन्दर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
इंसानियत पर तीखा प्रहार और सीख भी कि
जवाब देंहटाएंसम्हलो और सुधरो
बहुत अच्छी रचना
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
रुदाली शीर्षक के साथ दूषित मानसिकता पर सीधा प्रहार करती विचारोत्तेजक रचना। संकटकाल में भी कुछ लोग अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते परेशानी का सबब बन जाते हैं जो निंदनीय है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर रचना पर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
स्तरीय पर सीधा सीधा प्रहार।
जवाब देंहटाएंसम्पर्क चिंतन देती अमानुषिक व्यवहार मनु का कितना असंवेदनशील है।
शानदार प्रस्तुति।
सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु सुंदर समीक्षा के लिए.
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बना रहे.