विश्व-पटल पर बदलते हालात पर,
ज़िंदगी के दिये अप्रत्याशित अनुभव पर,
आकलन की भयावह तस्वीर पर,
विचलित है जर्जर बूढ़ा नीम,
उम्र के ढलते पडाव पर।
उम्र के ढलते पडाव पर।
परस्पर अकारण हो रही मुठभेड़ से,
महामारी के वक़्त हो रही राजनीति से,
पुलिस पर हो रहे पथराव से,
डॉक्टरों-नर्सों की शहादत से,
छोड़ रहा है जड़े जर्जर बूढ़ा नीम,
उम्र के ढलते पडाव पर।
उम्र के ढलते पडाव पर।
अमेरिका इटली की दयनीय हालत पर,
अपने ही देशवासियों की नासमझी पर,
अपने ही देशवासियों की नासमझी पर,
आरोप-प्रत्यारोप के इस क्रूर संग्राम पर,
ऐसे वक़्त पैसे बटोरती परछाइयों पर,
अस्तित्त्व दरकिनार किए जाने पर,
बहा रहा है अश्रु जर्जर बूढ़ा नीम,
उम्र के ढलते पडाव पर।
उम्र के ढलते पडाव पर।
नीम की गुणवत्ता न समझ पाने पर,
अपने आप पर होते सीधे प्रहार पर,
कोरोना-काल में अपनों की बेरुख़ी पर,
रुक-रुककर चलती हवा में सांसों पर,
ता-उम्र लुटाई ज़िंदगी से कुछ प्रेम के ,
माँग रहा है मीठे बोल जर्जर बूढ़ा नीम,
उम्र के ढलते पडाव पर।
©अनीता सैनी
उम्र के ढलते पडाव पर।
©अनीता सैनी
वाह प्रिय सखी अनीता ,बहुत सुंदर 👌.जर्जर बूढा नीम मौन है ,सब देखकर विचलित है ..।वाह!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया दीदी चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
हटाएंदर्दीले भाव उभारती मर्मस्पर्शी रचना जिसमें बुज़ुर्गों की उपेक्षा के प्रति समाज को सचेत करते हुए उनके कड़वे किंतु गुणों की खान जैसे जीवन से लाभांवित होने का आग्रह करती है।
जवाब देंहटाएंसभी को स्मरण रहना चाहिए कि बुढ़ापे के दौर से लगभग सभी का गुज़रना संभावित है तो बुज़ुर्गों के प्रति संवेदनशील रहना और उनकी समुचित देखभाल करना सबका नैतिक कर्तव्य है।
सादर आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
मार्मिक रचना, जो पेड के माध्यम जीवन के> भयावह सांझ का करून दृश्य प्रस्तुत करती है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया रेणु दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर