गगन में उमड़े घने,
मेघ थे वे,
मेघ थे वे,
छलकी थी निश्छल,
विवश बूँदें,
विवश बूँदें,
कब कहा मैंने तुम्हारी,
याद थी वह।
याद थी वह।
तपते मरुस्थल पर,
बिखरी थी,
बिखरी थी,
तुम्हारी स्मृतियों की,
गठरी थी वह,
गठरी थी वह,
कुछ मुस्कुरायी कुछ,
पथराई-सी थीं वे,
पथराई-सी थीं वे,
तपन के हाथ में पड़े,
समय के छाले थे वे।
समय के छाले थे वे।
माँज रहा था समय,
दुःख भरे नयनों को,
स्वयं को न माँज पाई,
एक पल की पीड़ा थी वह,
कल्याण का अंकुर,
उगा था उरभूमि पर,
बिखेर तमन्नाओं का पुँज,
हृदय पर लगी ठेस,
प्रीत ने फैलाया प्रेम का,
दौंगरा था वह।
©अनीता सैनी
दुःख भरे नयनों को,
स्वयं को न माँज पाई,
एक पल की पीड़ा थी वह,
कल्याण का अंकुर,
उगा था उरभूमि पर,
बिखेर तमन्नाओं का पुँज,
हृदय पर लगी ठेस,
प्रीत ने फैलाया प्रेम का,
दौंगरा था वह।
©अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंअद्भुत लेखनी
हटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी 🙏
हटाएंतपते मरुस्थल पर,
जवाब देंहटाएंथी बिखरी,
तुम्हारी स्मृतियों की,
गठरी थी वह,
कुछ मुस्कुरायी कुछ,
छलकी पथराई आँखें थीं वे,
तपन के हाथ में पड़े,
समय के छाले थे वे।
बहुत शानदार.....
जी बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
हटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (24-04-2020) को "मिलने आना तुम बाबा" (चर्चा अंक-3681) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
वाह!सखी ,सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
माँज रहा था समय,
जवाब देंहटाएंदुःख भरे नयनों को,
स्वयं को न माँज पाई,
एक पल की पीड़ा थी वह,
कल्याण का अंकुर,
उगा था उरभूमि पर,
बिखेर तमन्नाओं का पुँज,
हृदय पर लगी ठेस,
प्रीत ने फैलाया प्रेम का,
दौंगरा था वह।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन।
सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूब 👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंभावों का सुंदर गुलदस्ता।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुधा दी ।
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