देश नहीं पहले-सा मेरा।
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सुखद नहीं पेड़ों की छाया,
सबके मन में माया-माया,
लालच ने सबको है घेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
मन में बहुत निराशा भरते
ओछे यहाँ विचार विचरते
उजड़ रहा खुशियों का डेरा।
देश नहीं पहले-सा मेरा।
पुतली सिकुड़ी मानवता की,
जीत हो रही दानवता की,
अंधकार का हुआ बसेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
घृणा बसी है घर-आँगन में,
प्रेम बहिष्कृत हुआ चमन में,
गली में घूमे द्वेष लुटेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
तरु जल को लाचार हो गये,
पैने अत्याचार हो गये,
छाया है अँधियार घनेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
चीत्कार करते हैं दादुर,
आत्मदाह को मन है आतुर,
दूर-दूर तक नहीं सवेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
चातक कितना है बेचारा,
सूखी है सरिता की धारा,
जीवन आज नहीं है चेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
© अनीता सैनी
पतित हुआ लोगों का चेहरा,
जवाब देंहटाएंदेश नहीं पहले-सा मेरा।
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सुखद नहीं पेड़ों की छाया,
सबके मन में माया-माया,
लालच ने सबको है घेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
मन में बहुत निराशा भरते
ओछे यहाँ विचार विचरते
उजड़ रहा खुशियों का डेरा।
देश नहीं पहले-सा मेरा।
बहुत सुन्दर अनीता जी लिखते रहिये ••••
बहुत बहुत शुक्रिया सर 🙏.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक गीत।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंवाह वाह वाह वाह वाह वाह क्या कहने है
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंसादर
पतित हुआ लोगों का चेहरा,
जवाब देंहटाएंदेश नहीं पहले-सा मेरा।
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सुखद नहीं पेड़ों की छाया,
सबके मन में माया-माया,
लालच ने सबको है घेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
क्या बात है !!!! देश में फैले विषैले वातावरण को हुबहू शब्दांकित करता सराहनीय सृजन|
सादर आभार आदरणीय दीदी
हटाएंसादर
पुतली सिकुड़ी मानवता की,
जवाब देंहटाएंजीत हो रही दानवता की,
अंधकार का हुआ बसेरा,
देश नहीं पहले-सा मेरा।
वाह!!!अनीता जी शानदार गीत रचा है आपने
देश के मौजूदा हालातोंं से खिन्न कवि मन उद्वेलित होकर अपने देश की प्रचीन संस्कृति की यादों में रो पड़ा है।
बहुत ही लाजवाब सृजन।
सादर आभार आदरणीय दीदी
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
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