मंगलवार, अप्रैल 7

हरसा देना तुम



शुष्क रसा पल्लव अब सारे,
स्नेह धार बरसा देना तुम,
प्रीत पौध पर पुष्प खिलेंगे, 
धरा चीर सरसा देना तुम। 

जीवन रहस्य सागर गहरा, 
संदेश पवन को लिख छोड़ा
पर्वत पीड़ा मैं लिख दूँगी, 
संताप हरण क्यों मुख मोड़ा,
सोये मानुष उठ जाएँगे,
मनुज धर्म दरसा देना तुम। 

 प्रसून  धरा है वादियों की, 
द्वेषित मानस पर धर देना, 
प्रहरी पीड़ा क्षण भर की है,
 पत्र प्रेम रस से भर  देना, 
मंजुल,मधुर चहक पाखी की,
मीठी धुन उरसा देना तुम। 

भाव समय सुंदर पटलक पर,
करुणा की सरगम बिखरेगी 
रीतियों-नीतियों में  बँधकर,
ममता मानव की निखरेगी, 
पंछी भर भर जल लाऐगे, 
पात प्रीत हरसा देना तुम। 


@ अनीता सैनी 'दीप्ति '

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में मेरे नवगीत को स्थान देने हेतु.
      सादर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को      "मातृभू को शीश नवायें"  ( चर्चा अंक-3665)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सादर आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मेरे नवगीत को स्थान देने हेतु.
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. वाह ... बहत ही लाजवाब ... गेयता से परिपूर्ण ... सुन्दर भाव प्रधान रचना ...

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    1. सादर आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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