वे प्रज्जवलित दीप बनना चाहते हैं।
अँधियारी गलियों को मिटाने का दम भरते
चौखट का उजाला दस्तूर से बुझाना चाहते हैं।
मरु में राह की लकीर खींच आँधी बुलाते
कंधों पर लादे ग़ुरुर सहानुभूति थमाना चाहते हैं।
मिटने की नहीं मिटाने की तत्परता से
क्रांति का बिगुल क्रान्तिकारी बन बजाना चाहते हैं।
जगना नहीं जग को जगाने की प्रवृत्ति लिए
बुद्धि की कतार में नाम दर्ज करवाना चाहते हैं।
द्वेष घोलते परिवेश में शब्दों के महानायक
प्रीत की नई परिभाषा गढ़ना चाहते हैं।
क़लम में महत्त्वाकांक्षा की मसी का उफान
विश्व का उद्धार एक पल में लिखना चाहते हैं।
अतीत को पलटते ग़लतियाँ समझाते सबल
वर्तमान को कुचलते भविष्य को नोचना चाहते हैं।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
© अनीता सैनी 'दीप्ति'