पथिक की मंज़िल बनी,
कभी पैरों की बनी ठांव ।
माँ...
कभी पैरों की बनी ठांव ।
माँ...
भूखे की रोटी बन सहलाती,
बेघर को मिला गंतव्य गांव,
बेघर को मिला गंतव्य गांव,
माँ तुम हृदय में रहती हो मेरे,
हो प्रेरक प्रेरणा की ठंडी छांव।
माँ...
हो प्रेरक प्रेरणा की ठंडी छांव।
माँ...
संवेदना बन हृदय में समायी
मिला वात्सल्य रुप निराकार,
हो सतरंगी फूलों की बहार,
मिला वात्सल्य रुप निराकार,
हो सतरंगी फूलों की बहार,
अंतरमन में करुणा का भंडार ।
माँ...
माँ...
नैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
मन के मनकों की हो बौछार,
तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
माँ तुम सांसों का हो उद्गार।
माँ..
तुम हो साहस की सौगात,
चिरजीवन का साया बनी हर बार
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
बन करुणा का कोमल किरदार।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
मन के मनकों की हो बौछार,
तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
माँ तुम सांसों का हो उद्गार।
माँ..
तुम हो साहस की सौगात,
चिरजीवन का साया बनी हर बार
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
बन करुणा का कोमल किरदार।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
लाजवाब
हटाएंबहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिकिया हेतु.
हटाएंसादर
मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सुंदर प्रतिकिया हेतु.
हटाएंसादर
माँ...
जवाब देंहटाएंउजली धूप बनी जीवन में,
कभी बनी शीतल छांव,
पथिक की मंज़िल बनी,
कभी पैरों की बनी ठांव...
माँ की ममता का पूरा सार समाया है रचना में । बहुत सुन्दर सृजन .
सादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
तुम हो साहस की सौगात,
जवाब देंहटाएंचिरजीवन का साया बनी हर बार
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
बन करुणा का कोमल किरदार।
माँ की ममता का बेहद सुंदर चित्रण अनीता जी
सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
माँ हजी तो सब कुछ है ... उसी से हम हैं ... वो हमसे बाहर नहीं ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मार्गदर्शन करती समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
आदरणीया अनीता सैनी जी, माँ के लिए भावनाओं को अभिव्यक्ति देती सुन्दर रचना। ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं :
जवाब देंहटाएंनैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
मन के मनकों की हो बौछार,
तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
माँ तुम सांसों का हो उद्गार। --ब्रजेन्द्र नाथ
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिकिया हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंउजली धूप बानी जीवन मे
वाह
सादर आभार आदरणीया दीदी आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
तुम हो साहस की सौगात,
जवाब देंहटाएंचिरजीवन का साया बनी हर बार
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
बन करुणा का कोमल किरदार।
वाह!अनीता जी बहुत ही सुन्दर उद्गार माँ के लिए मातृदिवस पर .....
अनंत शुभकामनाएं।
सादर आभार आदरणीया दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
नि:शब्द...
जवाब देंहटाएंनैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
जवाब देंहटाएंमन के मनकों की हो बौछार,
तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
माँ तुम सांसों का हो उद्गार।
माँ..
अद्भुत सच्चाई ।
अंतर तक उतरता सृजन।