तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमते रहेंगे।
वे युधिष्ठिर-सा अभिनय
शकुनी-से पासे फेंकेंगे।
ऊसर हो चुकी संवेदना
स्मृतियों में यातना भोगेगी।
क्रोध जलाएगा अस्थियाँ
विज्ञान उपचार तलाशेगा।
वे आधिपत्य की उड़ान से
गिद्द रुप में प्रहार करेंगे।
करतब से कोयला बिखेरेंगे।
इंसान की देह पैरों तले कुचलेंगे।
स्वार्थ के कल्मष की चीख़ से सूर्य
अंधकार में छिप जाएगा।
नीरव स्मृति हृदय पर गुँजाती
गलियारे से दौड़ती आएगी।
©अनीता सैनी
वाह! शुद्ध हिंदी की शानदार कविता।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
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ये सच है अनिता जी,
जवाब देंहटाएंइर्द गिर्द घूमते लोग किस मुखोटे में है
यह पहचानना मुश्किल है
🙏🏻🙏🏻💐💐
सादर आभार आदरणीय सर सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मेरे सृजन को स्थान देने हेतु.
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वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
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सुन्दर शब्दों के साथ अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा हेतु.
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नीरव स्मृति हृदय पर गुँजाति
जवाब देंहटाएंगलियारे से दौड़ती आएगी।
छल के इस युग का सही चित्रण उकेरा है आपने,
हर शब्द एक चेतावनी देता सा ।
सटीक सार्थक।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी रचना का मर्म स्पष्ट करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए. आपका साथ, आशीर्वाद, स्नेह बना रहे.
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
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बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका.
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा हेतु.
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ऊसर हो चुकी संवेदना के गांव फिर बसेंगे। वक़्त की करवट के साथ अनेक परिभाषाएँ भी बदलतीं हैं। छल-कपट मानव स्वभाव की ऐसी कमज़ोरी है जो उसके पतन का कारण बनती है। कविता सृजन का यही उद्देश्य है कि वह समाज की संवेदना को बचाए रखे और पीढ़ी-दर-पीढ़ी संवेदना का स्वर गूँजता रहे ताकि मानवता का आँचल विस्तृत बना रहे।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
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ऊसर हो चुकी संवेदना
जवाब देंहटाएंस्मृतियों में यातना भोगेगी।
क्रोध जलाएगा अस्थियाँ
विज्ञान उपचार तलाशेगा।
केन्द्रित भाव की रचना । बहुत संदर ।
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
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