नैनों के झरोखे से झरती ज़िंदगियाँ,
नहीं देख सकती लवणता में डूबी सांसें,
वे स्वार्थ का लबादा ओढ़े पीड़ा पहुँचाते हैं,
नहीं छिपा सकती अपनी संवेदना को।
वे सांत्वना देते हुए बारंबार तोड़ते हैं,
हार के एहसास की माला से जोड़ते हैं,
वे चुभते हैं इंसान की इंसानीयत को,
नहीं भुला सकती उनकी वेदना को।
सुसभ्य संस्कारों के पतन का आकलन,
लालसाओं की दस्तक करती विस्तार,
हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्त्व का भार,
नहीं देख सकती मनीषा की आत्मवंचना को।
सुसभ्य संस्कारों के पतन का आकलन,
लालसाओं की दस्तक करती विस्तार,
हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्त्व का भार,
नहीं देख सकती मनीषा की आत्मवंचना को।
आसान होगा सफ़र सांसों का जहां में,
शोहरत का रत्नजड़ित मुखौटा पहनने से,
प्रवचन में गूँथी वाकचातुर्यता यथार्थ को झुठलाती,
नहीं देख सकती कर्म की अवेहलना को।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
आसान होगा सफ़र सांसों का जहां में,
जवाब देंहटाएंशोहरत का रत्नजड़ित मुखौटा पहनने से,
बहुत खूब !! लाजवाब सृजन ।
सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक गीत
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूब...सच, ना चाहते हुए भी बहुत कुछ देखना पीड़ादायक होता हैं ,सुंदर सृजन अनीता जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
आदरणीया अनिता जी, बहुत अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंगूँथी वाकचातुर्यता यथार्थ को झुठलाती,
नहीं देख सकती कर्म की अवेहलना को। बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
यथार्थ को झुठलाने के लिए ही वाग्विलास के बाड़ खड़ा किया जाता है। --ब्रजेंद्रनाथ
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. सार्थक समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
हटाएंआशीर्वाद बनाये रखे.
सुसभ्य संस्कारों के पतन का आकलन,
जवाब देंहटाएंलालसाओं की दस्तक करती विस्तार,
हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्त्व का भार,
नहीं देख सकती मनीषा की आत्मवंचना को।
नहीं देख सकते फिर भी देखते ही हैं और देखते ही देखते खुद भी इसी वेदना से होकर गुजरते हैंक्या कर पाते हैं हम...।
बहुत ही उत्कृष्ट लाजवाब सृजन
वाह!!!
सादर आभार आदरणीय दीदी आपकी सारगर्भित समीक्षा मिली. विचारों को एक दिशा प्राप्त हुई. हमेशा अपना आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 04 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी पाँच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्व का भार....
जवाब देंहटाएंसटीक यथार्थ सामयिक चित्रण ,विचारणीय
सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
हटाएंसादर
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
हटाएंसादर
बहुत-बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बेबाक ! बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंसादर आभार बहना अत्यंत हर्ष हुआ आपकी मोहक समीक्षा पाकर.
हटाएंसाथ बनाये रखे.
बहुत ही संवेदनशील लेखन ।
जवाब देंहटाएंगहन विचार सुंदर भाव ।
सार्थक सृजन।
यथार्थ की धरातल पर खड़ी रचना।
सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सकारात्मक समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंसादर
वाह!
जवाब देंहटाएंयथार्थ का व्यंग्यात्मक चित्रण जिसमें कहीं-कहीं ऊहापोह की स्थिति से उबरने का मार्ग भी सूझता है। भावपक्ष पर कलापक्ष प्रभावी नज़र आता है। सुंदर सृजन।
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर