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बुधवार, मई 27

ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में



ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में
यों भ्रम में बुने सपने भी पथिक
कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं।
परिग्रह के पात-सा झरता पुण्य
 पत्ते बन फिर पल्ल्वित होता है।
अनजाने पथ पर
अनजाने साथी भी  सच्चे होते हैं।

राहगीर राह  की दूरी भाँपना
यात्रा सांसों की अति मधुर होती है।
नीलांबर में डोलते बादल के टुकड़े
 दुपहरी में राहत की छाँव देते हैं।
पर्वत से बहता नदियों का निर्मल जल
धूप से धुले पारदर्शी पत्थर
 बेचैन मन को भी शीतल ठाँव देते हैं।

ऊषा उत्साह का पावन पुष्प गढ़ती है
प्राची में  प्रेम का तारा चमकता है।
अंशुमाली-सा साथ होता है अहर्निश
दुआ बरसती है तब शौर्य दमकता है।
तुम इत्मीनान से चलना पथिक
ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में
यों भ्रम में बुने सपने भी
 कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 27 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु.
      सादर

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  2. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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  3. राहगीर राह की दूरी भाँपना
    यात्रा सांसों की अति मधुर होती है।
    नीलांबर में डोलते बादल के टुकड़े
    दुपहरी में राहत की छाँव देते हैंं
    काश इन राहगीरों पर भी नीलांबर मेहरबान होता...
    ऊषा उत्साह का पावन पुष्प गढ़ती है
    प्राची में प्रेम का तारा चमकता है।
    अंशुमाली-सा साथ होता है अहर्निश
    दुआ बरसती है तब शौर्य दमकता है।
    तुम इत्मीनान से चलना पथिक
    ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में
    यों भ्रम में बुने सपने भी
    कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं।
    इसी उम्मीद सभी संवेदनशील देशवासियों की ऐसी ही दुआओं के विश्वास के साथ इन मुश्किलों में बढ़ रहे होंंगे ये पथिक..
    बहुत ही हृदयस्पर्शी अद्भुत शब्दसंयोजन से सजी लाजवाब रचना...
    वाह!!!

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  4. राहगीर राह की दूरी भाँपना
    यात्रा सांसों की अति मधुर होती है।
    नीलांबर में डोलते बादल के टुकड़े
    दुपहरी में राहत की छाँव देते हैं।
    बहुत भावपूर्ण प्रिय अनीता। सरल, सहज भावों से सजी रचना 👌👌👌👌 हार्दिक शुभकामनायें इस रचना के लिए। सचमुच----
    कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं/////

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    1. सादर आभार आदरणीया रेणु दीदी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  5. गहन और गंभीर भाव अनीता जी ! आपके रचना में मुझे सांकेतिक पुट नजर आया । वैश्विक महामारी में मनुज कहीं न कहीं संबल खो है रहा कि हालात कब सुधरेंगे ..वहाँ आशावादी नजरिया है वहीं पर्वत बहती नदियाँ कल के समाचारों में लद्दाख में चीनी सेना की बढ़ती हलचल और हमारे राष्ट्र प्रहरियों की सुरक्षात्मक सरगर्मी का भान कराती है । यूं तो आप हमेशा ही लाजवाब लिखती हैं मगर मुझे यह रचना बेहद अच्छी लगी ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी व्याख्यान लिए सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  6. नये बिम्बों के साथ सुन्दर मुक्त रचना।

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    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु.
      सादर

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  7. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3715 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मेरे सृजन को स्थान देने हेतु.
      सादर

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  8. बहुत सुंदर आशा का ताना-बाना बुनती दग्ध हृदय पर शीतल फाहे सी सुंदर रचना ।

    "तुम इत्मीनान से चलना पथिक
    ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में
    "तो भ्रम में बुने सपने भी
    कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं।
    लाजवाब।
    अभिनव।

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    1. सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया.
      आभारी हूँ आपकी.
      सादर

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  9. बहुत बहुत सुहाना, मनमोहक;

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    1. सादर आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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  10. जितनी सुंदर रचना ,उतनी ही सुंदर टिप्पणीयां सबकी ,आशा से परिपूर्ण है रचना बहना ,मन का विश्वास कमजोर हो न

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  11. सुंदर व सार्थक रचना के लिए साधुवाद

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    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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  12. बहुत ही संदर रचनाा ।

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    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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