जब भी सहलाया मैंने
आँखों में साहस को और
बलवती पाया मैंने।
निर्मल पौधा क्षमादान का
संजीदगी से सींचती आयी।
छिपा रहस्य इंसानियत का
संवेदना से निखरा पाया।
स्थूल जिव्हा मर्मान्तक की
शब्दजाल का न प्रभाव गढ़ा
पूछ रहा प्रिये पीड़ा मन की
प्रीत जता वाकया नैनों में गढ़ा।
पलकों से पोंछती अश्रु अपने
ज़ख़्मों ने राह कहीं और बनायी।
एक चिड़िया ने यह व्यथा बतायी।
आहट न सांसों को हो पायी।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-05-2020) को "अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3700) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
पलकों से पोंछती अश्रु अपने
जवाब देंहटाएंज़ख़्मों ने राह कहीं और बनायी।
एक चिड़िया ने यह व्यथा बतायी।
आहट न सांसों को हो पायी।
वाह गहन भाव!! संवेदनाओं को सहलाता उम्दा सृजन।
बहुत सुंदर लेखन ।
सादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
खूब लिखा है अपने ... 💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर.
हटाएंसादर