समय की दीवार पर दरारें पड़ चुकीं थीं
सिमटने लगा था जन-जीवन
धीरे-धीरे इंसान संयम खो रहा था
मानव अपने हाथों निर्धारित
किए समय को नकार चुका था
उसने देखा अतीत कराह रहा है
उसकी आँखें धँस चुकीं थीं
चिंता से उसका चेहरा नीला पड़ चुका था
एक कोने में अंतिम सांसें गिन रहा था
उसके ललाट पर चिंता थी
चिंता में छिपे थे कुछ जीवनोपयोगी विचार
जो वो वर्तमान को देना चाहता था
वह बार-बार वर्तमान से आग्रह करता
चारपाई के पास बैठने का
परंतु वर्तमान की गोद में भविष्य था
जैसे ही वर्तमान बैठना चाहता भविष्य रोने लगता
भविष्य के रोने से वर्तमान विचलित हो उठता
वह कभी अतीत से कुछ सीख नहीं पाया
देखते ही देखते एक दिन अतीत ने
जीवन की अंतिम सांस ली
उसी दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी
उसी बरसात में अतीत भी बह गया
उसके हाथ में एक चिट्ठी थी
वह चिट्ठी वर्तमान के लिए थी
वर्तमान एक ज़िम्मेदारी के साथ आगे बढ़ रहा था
उसे भविष्य की परवरिश की फ़िक्र सता रही थी
अतीत की वह चिट्ठी कभी पढ़ ही नहीं पाया
उसे वहीं समय की दीवार में छिपा दिया
पता ही नहीं चला कब वर्तमान
अतीत की शैया पर लेट गया
समय का दोहराव हुआ,
वर्तमान भविष्य को गोद में लिए वहीं खड़ा था
अब उसे अतीत की कही बात याद आने लगी
परंतु उसके पास वह समझ नहीं थी
जो उससे पहले वाले अतीत के पास थी
उसे चिट्ठी याद आयी जो वहीं
समय की दीवार में दबी थी।
उसने कँपकपाते होठों से वह चिठ्ठी पढ़ी -
प्रिय वर्तमान,
जब यह चिट्ठी तुम्हारे हाथ में होगी,
मैं तुमसे बहुत दूर जा चुका होऊँगा
तुम्हारे पास उस समय इतना वक़्त भी नहीं होगा
कि तुम मेरे बारे में विचार कर सको
तुम्हें भविष्य की फ़िक्र है, होनी भी चाहिए
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारी इच्छाएँ भविष्य को लेकर तुम से द्वंद्व कर रहीं हैं
भविष्य को निखारने की चाह तुम्हें भटकाव का रास्ता न दिखा दे
मैं यह नहीं कहता कि तुम मुझे सीने से लगाए रखो
परंतु कभी-कभार साइड मिरर समझ देखना भी ज़रुरी होता
भविष्य को गिरने से बचाने के लिए
मुझे आज भी याद हैं
जब मैं स्वयं की पीठ थपथपाया करता था
छोटी-छोटी ख़ुशियों पर मुस्कुराया करता था
मेरी राह में भी अनगिनत रोड़े थे
परंतु मैंने विवेक नहीं खोया
कुछ परिस्थितियाँ संयोग से बनतीं हैं
कुछ हम स्वयं बनाते हैं
आगे बढ़ने की चाह किसकी नहीं होती
परंतु मैं अपना दायरा कभी नहीं भूला
प्रभाव को नहीं गुणवान को दोस्त बनाया करता था
अमेरिका,ब्रिटेन बुरे नहीं परंतु मैंने रुस से हाथ मिलाया था
अंतिम समय में
मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था
तुम कौनसे नशे में थे!
तुमने करतूत चीन की भुलाई क्यों ?
गलवान घाटी को लहू से नहलाया क्यों ?
मैं नहीं भविष्य यही प्रश्न दोहराएगा
मेरे प्रश्न पर एक और प्रश्नचिह्न लगाएगा।
तुम्हारा अतीत
25/06/2020
©अनीता सैनी 'दीप्ति'