डैने सिकोड़े निकले हैं उन्मुक्त उड़ान पर।
नींद में ऊँघता है जब पृथ्वी का कण-कण
तब गंत्तव्य में ढूँढ़ते हैं अनुत्तरित प्रश्न ।
अरण्य में खोजते सांस बिला जीवन
दंश में साहस बटोरते अमल विनय से।
धैर्य का पुष्प खिलाते अर्द्धयामिनी में
उम्मीद बाँध पैरों पर चलते इत्मिनान से।
मुग्ध हैं चाँदनी बिखेरते चाँद को देख
तुहिन-कणों से प्राप्त प्रेम के कण बीनकर।
अंतस से फूटते करुण स्वर हैं गूँजते
भारमुक्त हो संज्ञा में तिरते पाहन के।
अँधियारी रात बिछड़ते कुछ साथी
कुछ ज़ख़्मी हो लौटते उड़ान भरने को।
हवा की स्वरबंदी धरा से अथाह स्नेह
झींगुरों की आवाज़ में ठहरे वे सुस्ताने को।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-06-2020) को "ज़िन्दगी के पॉज बटन को प्ले में बदल दिया" (चर्चा अंक-3721) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंअँधियारी रात बिछड़ते कुछ साथी
कुछ ज़ख़्मी हो लौटते उड़ान भरने को।
हवा की स्वरबंदी धरा से अथाह स्नेह
झींगुरों की आवाज़ में ठहरे वे सुस्ताने को।
पक्षियों के माध्यम से समूची प्रकृति की सुगबुगाहट के साथ में मानव समूह की जीजिविषा और संघर्ष को दर्शाती अद्भुत रचना ।
सादर आभार आदरणीय मीना दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरा उत्साहवर्धन करती है. आशीर्वाद बनाए रखे.
हटाएंसादर
पंछी और प्राकृति तो वैसे भी पूरक हैं इक दूजे के ...
जवाब देंहटाएंउनकी दिनचर्या जीवन प्रवाह को सहजता से लिखा है ... सुन्दर रचना ...
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे.
सादर
अति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती सुंदर समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनाए रखे.
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मुग्ध हैं चाँदनी बिखेरते चाँद को देख
जवाब देंहटाएंतुहिन-कणों से प्राप्त प्रेम के कण बीनकर।
सुंदर भाष शैली
नींद में ऊँघता है जब पृथ्वी का कण-कण
तब गंत्तव्य में ढूँढ़ते हैं अनुत्तरित प्रश्न ।
बहुत सुंदर
बहुत प्यारे भाव। .अच्छी रचना
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
सादर आभार आदरणीय ज़ोया जी मार्गदर्शन करती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु.
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वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे.
सादर
हवा की स्वरबंदी धरा से अथाह स्नेह
जवाब देंहटाएंझींगुरों की आवाज़ में ठहरे वे सुस्ताने को।
वाह बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति👌👌
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
नींद में ऊँघता है जब पृथ्वी का कण-कण
जवाब देंहटाएंतब गंत्तव्य में ढूँढ़ते हैं अनुत्तरित प्रश्न ।
गंतव्य भी निरूत्तर सा मौन साधे रहता है इनके आगे....
मुग्ध हैं चाँदनी बिखेरते चाँद को देख
तुहिन-कणों से प्राप्त प्रेम के कण बीनकर।
और ये प्रेम के कण ही इनके जीवन का संम्बल हैं
अँधियारी रात बिछड़ते कुछ साथी
कुछ ज़ख़्मी हो लौटते उड़ान भरने को।
हवा की स्वरबंदी धरा से अथाह स्नेह
झींगुरों की आवाज़ में ठहरे वे सुस्ताने को।
वाह!!!
निशब्द करती बहुत ही लाजवाब कृति...।
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मार्गदर्शन करती है. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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