बादल का टुकड़ा दौड़कर आ गया।
कब जागेगा सोया मानस?
धरा की परतें पिघलीं पानी सोख गया।
मुग्ध मलयज के झोंकें
लेप चंदन का हृदय को भा गया।
सुख-समृद्धि की पनपती इच्छा
नीम के बौर-सी मिठास भा गयी।
जीवन-रण चेत उठी सूखी लहू की धार
सुन सूखे पत्तों-सी दूरन्त मद्धिम पुकार।
हिलोरें भरती स्मृतियाँ दिगंत पर बैठीं
टेसुओं संग मधुदूत निज गीत गा गया।
बिखरे भाव बीधता हिमालय पर्वत
सीने के अनगिनत घाव छिपा गया।
प्रीत की मनसा बाँधे पैरों से पाहन
श्वेत बिस्तर हिम का भा गया।
श्वेत बिस्तर हिम का भा गया।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार
(12-06-2020) को
"सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं" (चर्चा अंक-3730) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दीदी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 11 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी मंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
जीवन संघर्ष ऐसा हो होता है ... पल पल बदलती अवस्था को को पार पर संघर्ष से ही किया जा सकता है ...\
जवाब देंहटाएंगहरे भाव से बुनी रचना है ...
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर रचा का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय पुरुषोत्तम सर उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय अनुराधा दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु .
हटाएंसादर
बिखरे भाव बेंधता हिमालय पर्वत
जवाब देंहटाएंसीने के अनगिनत घाव छिपा गया।
प्रीत की मनसा बाँधे पैरों से पाहन
श्वेत बिस्तर हिम का भा गया।
सहज, सरल एवं सरस भाषा में एक सारगर्भित सार्थक सृजन । अतीव सुन्दर । दीदी ।
आभारी हुँ अनुज अखिलेश आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया .
हटाएंसादर
नीम के बोर सी मिठास ..बहुत बढ़िया उपमा हे
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
नए कलेवर की कविता . शब्द और भाव सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय गिरिजा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .आशीर्वाद बनाए रखे .
हटाएंसादर
गहरे भाव समेटे ,सुंदर सृजन प्रिय अनीता ।
जवाब देंहटाएंआभारी हुँ आदरणीय सुभा दीदी आपकी मनोबल बढ़ाने हेतु सादर आभार .
हटाएंहिलोरें भरती स्मृतियाँ दिगंत पर बैठीं
जवाब देंहटाएंटेसुओं संग मधुदूत निज गीत गा गया।
बहुत सुन्दर...
बिखरे भाव बेंधता हिमालय पर्वत
सीने के अनगिनत घाव छिपा गया।
प्रीत की मनसा बाँधे पैरों से पाहन
श्वेत बिस्तर हिम का भा गया।
गहन चिन्तनीय... सार्थक सृजन।
आभारी हुँ आदरणीय सुधा दीदी आपकी मनोबल बढ़ाने हेतु तहे दिल से आभार .आशीर्वाद बनाए रखे .
हटाएंसादर
"जीवन-रण चेत उठी सूखी लहू की धार
जवाब देंहटाएंसुन सूखे पत्तों-सी दूरन्त मद्धिम पुकार।
हिलोरें भरती स्मृतियाँ दिगंत पर बैठीं
टेसुओं संग मधुदूत निज गीत गा गया।"
रचना में मौलिकता उसका सौंदर्य कई गुना बढ़ा देती है।
अनूठे बिम्बों और प्रतीकों से सजी मनमोहक अभिव्यक्ति जो सुधी पाठकों के अंतस को छूने में सक्षम है।
ऐसी रचनाएँ पाठकों का एक वर्ग तैयार करतीं हैं जो शब्द, संवेदना और भाव में नए-नए अर्थ तलाशने में रूचि रखते हैं।
आभारी हुँ आदरणीय रविन्द्र जी सर आपकी हमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढ़ाती है आशीर्वाद बनाए रखे .
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंबिखरे भाव बीधता हिमालय पर्वत
सीने के अनगिनत घाव छिपा गया।
प्रीत की मनसा बाँधे पैरों से पाहन
श्वेत बिस्तर हिम का भा गया
अति उत्तम
सादर आभार आदरणीया ज्योति दीदी.आपका आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहें.यही कामना है
हटाएंसादर