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रविवार, जून 14

हृदय की फटन से सांसें फटकन-सी लगी



 हृदय की दरारों से सांसें फटकन-सी लगीं। 
पीड़ा आँगन में पसरी थी अदृश्य याचक की तरह। 
आँखें झुकाए नमी से हृदय की फटन छिपा रही थी। 
 कभी स्वाभिमान के मारे शब्दों से ढाका करती थी उन्हें। 

बिवाई समझ हृदय में मोम गलाकर भरा करती थी मैं। 
 गंगाजल छिड़ककर सांसें उपयोगी बनाया करतीं थीं। 
परंतु वे आँखें अब सहारा तलाश रहीं थीं। 
उसकी बिखरती मनःस्थिति को मैं संभाल न सकी। 

मेरे हृदय का गलना उस वक़्त व्यर्थ था महज दिखावा
क्योंकि उसके हृदय की फटन से प्रश्न रिस रहे थे
और में निरुत्तर थी। 
यह मैं और मेरे देश की भटकती व्यवस्था थी। 
हम व्यवस्थित दहलीज़ की झिर्रियों से झाँक रहे थे। 

© अनीता सैनी 'दीप्ति'

24 टिप्‍पणियां:

  1. सुशांत का यूँ जाना बहुत दुखद के साथ साथ कई सारे सवाल भी छोड़ गया। आखिर सब कुछ होने के बाद भी ऐसी कौन सी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है कि लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।

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    1. क़दम उठाने के लिए मजबूर किया जाता है हमारे देश की व्यवस्था ही ऐसी है.एक घर से लेकर उच्च सत्ता तक भेद भाव भरा हुआ है.कुछ हृदय नाज़ुक होते है नहीं झेल पाते .ब्लॉग पर आने और मनोबल बढ़ाने हेतु सादर आभार आदरणीय .
      सादर

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  2. मार्मिक रचना।
    --
    दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

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    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

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  3. मार्मिक रचना ..दिवंगत आत्मा के लिए हृदय व्यथित है । अपने दुख समेटे जो इस संसार से चला गया उसको विनम्र श्रद्धांजलि ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी.आपका स्नेह आशीर्वाद लेखन में बेहतर करने की प्रेरणा है. आपका साथ पाकर ख़ुद को सौभाग्यशाली समझती हूँ.
      स्नेह बनाए रखे .

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  4. बीमार से कोई नहीं पूछता बीमारी के बारे में। श्रद्धाँजलि।

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    1. सही कहा से बीमार से बीमारी के बारे में पूछना दूर पता चल जाए बीमार है खिली उड़ाने पहले पहुँच जाते है यही है हमारी सामाजिक व्यवस्था .सादर आभार मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु .
      सादर

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  6. जाना तो सब को है इक दिन , पर इस तरह से भी कोई जाता है
    हम्म्म



    मार्मिक रचना।
    --
    दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय जोया जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

      हटाएं
  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी,

    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    ---

    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय दीदी मंच पर स्थान देने हेतु .
      सादर

      हटाएं
  8. बहुत ही मार्मिक रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

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  9. परंतु वे आँखें अब सहारा तलाश रहीं थीं।
    उसकी बिखरती मनःस्थिति को मैं संभाल न सकी।

    जी एक अदद दोस्त की आवश्यकता थी उन्हें जिनसे वह अपनी हर बात को कह पाएं।

    मेरा मानना तो यहाँ तक है कि जिंदगी में एक यार ऐसा जरूर होना चाहिए जो हमारा हमसफर, हमनवा, हमदर्द हो जो हमारे दर्द को बांट सकें।

    धन्यवाद

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    1. जी बहुत ही सुंदर विचार है आपका परंतु दुनिया में आज ऐसा संभव कहाँ है छल कपट द्वेष चारों और छाया है.सादर आभार मनोबल बढ़ाने हेतु .
      सादर

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  10. 2020 शायद बहुत कुछ सिखा के जाएगा everybuddy back to basic

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    1. सही कहा आदरणीय सर आपने बहुत कुछ सिखाकर जाएगा 2020 और कुछ न सही इंसान को सांसों की अहमियत जरुर बताकर जाएगा .सादर आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

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  11. हर तरफ हर जुबां पर बस यही चर्चा है ,इस हादसे को बखूबी पेश किया है आपने शब्दों के माध्यम से

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    1. हर तरफ़ चर्चा होनी लाज़मी है आदरणीय दीदी सुशांत ने अपनी छवि बनाई ही ऐसी थी मासूमियत भरी थी उसमे .
      सादर आभार आदरणीय दीदी ब्लॉग पर आपका आना ही सुखद है स्नेह बनाए रखे .
      सादर

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