लहू से सने शरीर राह की अथक ललकार
विधि ने लिखे मानव के अनकहे अधूरे थे अधिकार।
लंबे सफ़र की सँकरी गली के दूसरे मोड़ की लड़ाई
बिडंबना घाटी की पड़ोसी न बदल पाई।
कच्ची डोरियाँ पुनीत सूत से बँधे बँधन बाँधती
द्बेष-तृष्णा अंहकार के चलते वे रिश्ते आरियों से काटती।
और न जाने कितनी बार जाएगी वह छली
उजड़ी राह आँखों के कोर में खारा पानी लिए जली।
एक नदी की दो धारा दोनों का सार्थक था प्रवाह
ठौर ढूँढ़ते अविरल बहते न माँगते कभी छाँह।
कौन आंके मोल इस अनमोल शीतल जल का
मूल्य गढ़ता पड़ोसी मूल्यहीन विचारों में न मिली थाह।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
सैनी जी बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ आपकी लेखनी का । जिस भावना को आप अपने लेख में समाहित करते हैं सराहनीय है । बेहद खूबसूरत ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .बहुत हर्ष हुआ आज ..
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे .
सादर
संकरी गली हो के खुली गली ...
जवाब देंहटाएंपडोसी अच्छा ही होना जरूरी है ... बदलना आसान नहीं ...
सादर आभार आदरणीय मार्गदर्शन करने हेतु .
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे .
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 18 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय पाँच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(19-06-2020) को
"पल-पल रंग बदल रहा, चीन चल रहा चाल" (चर्चा अंक-3737) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय दीदी पाँच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूब । सही है ,पडौसी बदलना आसान नहीं ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे .
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु .
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आ अनीता सैनी जी, नमस्ते ! बहुत सुन्दर रचना ! उत्कृष्ट सृजन ! खासकर यह पंक्ति मुझे बहुत अच्छी लगी:
जवाब देंहटाएंकौन आंके मोल इस अनमोल शीतल जल का!--ब्रजेन्द्र नाथ
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
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जवाब देंहटाएंएक नदी की दो धारा दोनों का सार्थक था प्रवाह
ठौर ढूँढ़ते अविरल बहते न माँगते कभी छाँह।
कौन आंके मोल इस अनमोल शीतल जल का
मूल्य गढ़ता पड़ोसी मूल्यहीन विचारों में न मिली थाह।
उत्कृष्ट सृजन ,बधाई हो अनिता जी
सादर आभार आदरणीया दीदी आपका ब्लॉग पर आना ही अत्यंत हर्ष प्रदान करता है .स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे .
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उत्कृष्ट रचना अनिता जी👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु .
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बहुत सुन्दर रचना..... वीर शहीदों को नमन जय हिन्द
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
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चीन का चरित्र विश्वासघात का ही रहा हे लेकिन अब भारत मजबूत हाथो में हे
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट रचना
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
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एक शानदार सृजन,एक ऐसा सत्य जो बस सत्य है अपनी ही बेड़ी में सिसकता।
जवाब देंहटाएंमा"के अनकहे अधूरे थे अधिकार",पर वो चाहता है पूरे से भी अधिक जो वो समेट भी नहीं पाता पर चाहता है कि सारा आसमान अपने दामन में समा ले।
अद्भुत भावाभिव्यक्ति।
साधुवाद।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी. आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन ने सदैव मेरे लेखन को नई दिशा दी है. आपका साथ बना रहे.आशीर्वाद बनाए रखे .
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जवाब देंहटाएंआ अनीता जी, बहुत अच्छी रचना ! खासकर ये पंक्तियाँ लाजवाब हैं :
कौन आंके मोल इस अनमोल शीतल जल का
मूल्य गढ़ता पड़ोसी मूल्यहीन विचारों में न मिली थाह।
--ब्रजेन्द्र नाथ
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु .
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बहुत सशक्त और मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
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कच्ची डोरियाँ पुनीत सूत से बँधे बँधन बाँधती
जवाब देंहटाएंद्बेष-तृष्णा अंहकार के चलते वे रिश्ते आरियों से काटती।
और न जाने कितनी बार जाएगी वह छली
उजड़ी राह आँखों के कोर में खारा पानी लिए जली।
सुन्दर सृजन....
सादर आभार आदरणीय उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु .
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