है ज्वार-भाटा में दुःख फूट रहा।
मर्मान्तक वेदना लिखती क़लम
जाने मन मसी का क्यों टूट रहा !
पुरवाई फूल-पत्तों संग गाती
है बँधन खुशबू का छूट रहा।
चाँद-तारों के साथ नीलांबर
जाने भाग्य धरा का क्यों फूट रहा !
अधिकारबोध मानव दर्शाता
है धरणी का एक-एक टुकड़ा पीड़ा को पीता।
बँटवारे की व्यथित मनसा मानव की ढोता
जाने समय विधि को क्यों लूट रहा !
भानु की किरणें प्रभात लिखतीं
है चंद्र शीतल चाँदनी छिटकाता।
सृष्टि संज्ञा त्याग नित गढ़ती पथ पर
जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा !
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2020) को "शब्द-सृजन 24- मसी / क़लम " (चर्चा अंक-3725) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर शब्द सृजन में स्थान देने हेतु.
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अधिकारबोध मानव दर्शाता
जवाब देंहटाएंहै एक-एक टुकड़ा पीड़ा को पीता।
बँटवारे में व्यथित मनसा को ढोता
जाने समय विधि को क्यों लूट रहा !
राष्ट्र की सीमाओं पर विस्तारवादी पड़ौसी देशों की कुदृष्टि.. मर्मस्पर्शी भाव छलक पड़े हैं मन की गागर से..,अति सुन्दर सृजन अनीता ।
सादर आभार आदरणीय मीना दीदी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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"भानु की किरणें प्रभात लिखतीं..........जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा।"अत्यंत सुन्दर पंक्तियां👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय उर्मिला दीदी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु. आशीर्वाद बनाए रखे.
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सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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जवाब देंहटाएंभानु की किरणें प्रभात लिखतीं
है चंद्र शीतल चाँदनी छिटकाता।
सृष्टि संज्ञा त्याग नित गढ़ती पथ पर
जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा !
बहुत सुंदर प्रिय अनीता | कवि मन के मर्मान्तक भाव बहुत मर्मस्पर्शी हैं |
सादर आभार आदरणीय रेणु दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद यों ही बनाए रखे.
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वाह!सखी अनीता जी ,बहुत खूब!बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुभा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु. आशीर्वाद बनाए रखे.
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भानु की किरणें प्रभात लिखतीं
जवाब देंहटाएंहै चंद्र शीतल चाँदनी छिटकाता।
सृष्टि संज्ञा त्याग नित गढ़ती पथ पर
जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा ! बहुत सुंदर रचना सखी।
सादर आभार आदरणीय अनुराधा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ज्योति दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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कामयाब अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
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अधिकारबोध मानव दर्शाता
जवाब देंहटाएंहै धरणी का एक-एक टुकड़ा पीड़ा को पीता।
बँटवारे की व्यथित मनसा मानव की ढोता
जाने समय विधि को क्यों लूट रहा !
भानु की किरणें प्रभात लिखतीं
है चंद्र शीतल चाँदनी छिटकाता।
सृष्टि संज्ञा त्याग नित गढ़ती पथ पर
जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा !
बहुत ही बढ़िया लिखा है ,उत्कृष्ट रचना
सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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भानु की किरणें प्रभात लिखतीं
जवाब देंहटाएंहै चंद्र शीतल चाँदनी छिटकाता।
सृष्टि संज्ञा त्याग नित गढ़ती पथ पर
जाने कर्म से सत्कर्म क्यों छूट रहा !
वाह 👏 👏 👏 अप्रतिम लेखन 🌷
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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वाह अनुपम
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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कर्म और वो भी सत्कर्म से मार्ग छूटना किस कारण से ...
जवाब देंहटाएंकई बार व्यथित होता है मन पर अन्तागोत्व उसे मार्ग मिलता है ... कर्म से विश्वास नहीं हटना चाहिए ....
आभारी हुँ आदरणीय मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंआशीर्वाद बनाइये रखे .
सादर