वह देह से एक औरत थी
उसने कहा पत्नी है मेरी
वह बच्चे-सी मासूम थी
उसने कहा बेअक्ल है यह
अब वह स्वयं को तरासने लगी
उसने उसे रिश्तों से ठग लिया
वह मेहनत की भट्टी में तपने लगी
उसने कर्म की आँच लगाई
वह कुंदन-सी निखरने लगी
वह उसकी आभा को सह न सका
उसकी अमूल्यता को आंक न सका
वह सीपी के अनमोल मोती-सी थी
अब वह उसके तेज को मिटाने लगा
उसने उसे उसी के विरुद्ध किया
औरत को औरत की दुश्मन कह दिया
देखते ही देखते उसने उसके हाथ में
मूर्खता का प्रमाण-पत्र थमा दिया
उनमें से एक की आँखें बरस गईं
उसे औरतानापन कह पीटा गया
वहाँ सभी पुरुष के लिबास में थे
मैंने भी अपने अंदर की औरत को
आहिस्ता-आहिस्ता ख़ामोश किया
पूर्णरुप से स्वयं का जामा बदला
उस औरत को मिटते हुए देखने लगी |
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
नारी का मार्मिक और सुन्दर निरूपण।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
नारी मन की भावनाएँ ...
जवाब देंहटाएंपुरुष सत्ता पे गहरी चोट करती है ये रचना ... कई बार जाने अनजाने नारी ख़ुद इन सब का साथ देने लगती है ... सटीक सार्थक रचना ...
सादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरा मार्गदर्शन करती है.आशीर्वाद बनाए रखे.
हटाएंसादर
मर्मस्पर्शी रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय अनुराधा दीदी अत्यंत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया मिली.
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
मैंने भी अपने अंदर की औरत को
जवाब देंहटाएंआहिस्ता-आहिस्ता ख़ामोश किया
पूर्णरुप से स्वयं का जामा बदला
उस औरत को मिटते हुए देखने लगी |
हम ही ने खुद को मिटाया था अब हमें ही सवारना हैं। बहुत ही सुंदर ,नारी के दशा और मनोदशा का सुंदर चित्रण अनीता जी
सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीय दीदी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
मैंने भी अपने अंदर की औरत को
जवाब देंहटाएंआहिस्ता-आहिस्ता ख़ामोश किया
पूर्णरुप से स्वयं का जामा बदला
उस औरत को मिटते हुए देखने लगी ।
निशब्द हूँ.. सत्य जो चला आ रहा है सदियों से..उसको कितनी सहजता से ढाल दिया भावों में । आपके लेखन की यही शैली बहुत प्रभावित करती है ।
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी. आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन ने सदैव मेरे लेखन को नई दिशा दी है. आपका साथ बना रहे.
हटाएंवह देह से एक औरत थी
उसने कहा पत्नी है मेरी
वह बच्चे-सी मासूम थी
उसने कहा बेअक्ल है यह
अब वह स्वयं को तरासने लगी
उसने उसे रिश्तों से ठग लिया
वह मेहनत की भट्टी में तपने लगी
उसने कर्म की आँच लगाई
वह कुंदन-सी निखरने लगी
बेहतरीन रचना अनिता ,स्त्री मन को स्त्री ही समझ सकती है ,कुछ पंक्तियां याद आ रही है इसे पढ़ कर
जिंदगी खाक न थी
खाक उड़ाते गुजरी ,
तुझसे क्या कहते
तेरे पास जो आते गुजरी ।
वाह!निशब्द करती आपकी चंद पंग्तियाँ ...सम्पूर्ण रचना पढ़ना चाहूँगी आदरणीय दी.तहे दिल से आभार आपका आपके आने से सबल मिलता है.आशीर्वाद बनाए रखे.
हटाएंशुभ रात्रि .
जरूर सिर्फ तुम्हे लिखकर भेजूँगी ,किसी पोस्ट पर ,ढ़ेरो आशीष
हटाएंतहे दिल से आभार दी मैं इंतजार करुँगी.
हटाएंसादर प्रणाम
अंदर की औरत को खामोश!!
जवाब देंहटाएंनिशब्द!!
आपके सृजन के गहरे अतल में उतरकर आश्चर्यचकित हो जाती हूं।
गहन और संवेदनाओं से भरपूर अभिव्यक्ति।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी.आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन ने सदैव मेरे लेखन को नई दिशा दी है.आपका साथ बना रहे.
हटाएंदिल को छूने वाली पंक्तियाँ ! सशक्त लेखन !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अनीता दीदी आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा मनोबल बढ़ाती है.आशीर्वाद बना रहे .
हटाएंस्त्री की मासूमियत को
जवाब देंहटाएंबुद्धिहीनता,
कोमलता को कमजोरी,
और सृजनात्मकता को
मशीनी उर्वरता मानने वाले
समाज की संकीर्ण मानसिकता
के विरुद्ध
स्त्री स्वयं ही अपने
अस्तित्व की पूर्ण
परिभाषा लिख सकती है।
-----
बेहद सशक्त अभिव्यक्ति अनु।
गहन अभिव्यक्ति।
सस्नेह।
सराहना से परे आपकी अभिव्यक्ति आदरणीय श्वेता दी.
हटाएंनकारात्मकता के दायरे में उलझी मानसिकता का निवारण इंसान को स्वयं ही करना होगा आगे आने वाली भावी पीढ़ी हेतु.आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरा मनोबल बढ़ाती है .साथ बनाए रखे .
सादर
नारी के आंतरिक खामोशी की व्यथा को आपकी लेखनी ने बहुत स्वाभाविकता से उभारा है ये आपकी लेखनी का कमाल है👌👌👌👌निःशब्द हूँ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से अत्यंत ख़ुशी हुई आदरणीय उर्मिला दीदी.जब एक प्रभावी व्यक्तित्व लेखन की अँगुली थामता है डग भरने में सहूलियत होती है.ब्लॉग पर आतें रहें.
हटाएंसादर प्रणाम
नारी के प्रति समाज की उपेक्षित सोच और उस पर लादीं गईं वर्जनाओं को तोड़ने की उसकी संघर्षशीलता का सशक्त चित्रण करते हुए
जवाब देंहटाएंसमाज पर सवाल भी दागे गए हैं। यथास्थिति बनाए रखने की लैंगिंक विभेद की कुंठित भावना के प्रति स्त्री-शक्ति मुखरित हुई है किंतु
बिडंबना यह है कि अत्याचारों के प्रति समाज शिथिल है। आँकड़े सुधार के स्थान पर विकृति की ओर बढ़ रहे हैं।
ऐसा चिंतन एक विस्फोट की तरह निकलता है और सार्थक संदेश के साथ संवेदना को झकझोर देता है। परिस्थितियों के समक्ष आत्मसमर्पण
गहन चिंता का विषय है। आत्मकेन्द्रित समाज की झलक प्रस्तुत करने में कामयाब रचना।
सादर प्रणाम सर 🙏.
हटाएंमुझे लगा आप पुरुष ब्लॉगरो का मुझे विरोध सहना पड़ेगा.
आप की सकारात्मक प्रतिक्रिया से अत्यंत हर्ष हुआ.वर्षो से चलता आ रहा एक चिंतन था मन में पता नहीं किस घटना से क़लम से फुट पड़ा.आप सभी का आशीर्वाद मिला सृजन को इस हेतु सादर आभार .
हृदयस्पर्शी रचना सखी । नारी पर अत्याचार युगों युगों से होते आए है ,वो भी मौन रह कर सहती है ,मन ही मन घुटती रहती है । अपने को सभ्य और सुसंस्कृत कहनेवाला वर्ग भी इससे अछूता नहीं है । विषय गंभीर है ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया सुभा दीदी.पहले लगा हम हमउम्र है आपको काफ़ी बार सखी शब्द से संबोधन दिया माफ़ी चाहती हूँ.आप जैसी प्रतिष्ठित व्यक्तित्व ने सृजन को सकारात्मकता प्रदान की अत्यंत ख़ुशी हुई.आपकी निष्पक्ष समीक्षा बहुत अच्छी लगी.आशीर्वाद बनाए रखें आदरणीय दीदी .
हटाएंसादर प्रणाम
नमन है स्त्री को जो तमाम अत्याचार और संकीर्ण मानसिकता को झेलते हुए भी सृजन करती है मगर लैंगिक भेदभाव को कम होना चाहिए स्त्री को अपने अधिकार के लिए और मुखर होना पड़ेगा
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदना जगाती रचना
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
मर्मस्पर्शी रचना.... निःशब्द हूँ
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ भास्कर भाई आपकी .
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
फिर से निशब्द हूँ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।