शुक्रवार, जुलाई 10

अकेलापन अभिशाप



वह ख़ुश थी,बहुत ही ख़ुश 
आँखों से झलकते पानी ने कहा। 
असीम आशीष से नवाज़ती रही 
लड़खड़ाती ज़बान कुछ शब्दों ने कहा।  

पुस्तक थमाई थी मैंने हाथ में उसके 
एक नब्ज़ से उसने एहसास को छू लिया। 
कहने को कुछ नहीं थी वह मेरी 
एक ही नज़र में  ज़िंदगी को छू लिया। 

परिवार एक पहेली समर्पण चाबी 
अनुभव की सौग़ात एक मुलाक़ात में थमा गई। 
पोंछ न सकी आँखों से पीड़ा उसकी 
 मन में लिए मलाल घर पर अपने आ गई। 

अकेलेपन की अलगनी में अटकी  सांसें 
जीवन के अंतिम पड़ाव का अनुभव करा गई। 
स्वाभिमान उसका समाज ने अहंकार कहा  
अपनों की बेरुख़ी से बूढ़ी देह कराह  गई। 

© अनीता सैनी 'दीप्ति'

14 टिप्‍पणियां:

  1. पुस्तक थमाई थी मैंने हाथ में उसके
    एक नब्ज़ से उसने एहसास को छू लिया।
    कहने को कुछ नहीं थी वह मेरी
    एक ही नज़र में ज़िंदगी को छू लिया।
    लाजवाब व भाव सम्पन्न शब्द चित्र...बहुत सुन्दर सृजन ।

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  2. भाव,
    ममत्व अहसास
    इंतजार खत्म होने का चित्रण

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  3. अकेलेपन की अलगनी में अटकी सांसें
    जीवन के अंतिम पड़ाव का अनुभव करा गई।
    स्वाभिमान उसका समाज ने अहंकार कहा
    अपनों की बेरुख़ी से बूढ़ी देह कराह गई।
    बहुत ही गहरी भाव को समेटे बेहतरीन सृजन अनीता ,स्नेह

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'मंज़िल न मिले तो न सही (चर्चा अंक 3761) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  7. बहुत सुन्दर सृजन

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  8. बहुत सुंदर भावों से सजी रचना ।

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  9. भावों का सुंदर अवगुठंन।
    सुंदर शब्द संयोजन और भावों का सहज प्रवाह तुम्हारी रचना की विशेषता है अनु।
    सस्नेह।

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  10. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  11. परिवार एक पहेली समर्पण चाबी
    अनुभव की सौग़ात एक मुलाक़ात में थमा गई।
    पोंछ न सकी आँखों से पीड़ा उसकी
    मन में लिए मलाल घर पर अपने आ गई।
    ऐसे स्वाभिमानी जिन्हें नासमझ लोग अभिमानी कहते हैं....अक्सर मनमें घर कर जाते हैं और उनकी दुर्दशा और अपने मौन पर हमेंं जीवन भर मलाल रहता है...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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  12. आदरणीय शास्त्री जी,आदरणीया मीना दीदी,आदरणीय रोहिताश जी,आदरणीया कामिनी दीदी,आदरणीया अनुराधा दीदी,आदरणीया यशोदा दीदी,आदरणीय रविंद्र जी,आदरणीय राकेश जी,आदरणीय सुभा दीदी,आदरणीय श्वेता दीदी,आदरणीय ओंकार जी,आदरणीय भारती दीदी,आदरणीया सुधा दीदी आपका सभी का स्नेह आशीर्वाद मिला निशब्द हूँ मैं.शब्द नहीं की आभार व्यक्तकर सकूँ.आप सभी का सहयोग ही ऊर्जा है मेरी.मनोबल बढ़ाने हेतु तहे दिल से आभार आपका.आशीर्वाद बनाए रखे.आभार हूँ आप सभी की .
    सादर

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