देखा करें एकटक उनके जीवन को।
कंकड़-पत्थर कह उन्हें फिर धीरे से कहें
हाँ,लिख दी है जेठ में बरसती धूप को।
पर्वत से अटल झुलसतें सुविचारों को
मिट्टी की मोहक ख़ुशबू को।
लिख दी है मन के कोने में मरती मानवता को
फिर लिख न सकेंगे मृत्यु के इस आलाप को।
उनके जीवन को देख हम लिखा करेंगे
धुँधली बस धुँधली-सी समय की एक रेखा।
जो मूर्त स्मृतियों में बैठी स्वयं ही घट जाएगी
नहीं घटेगी धूप-सी दर्दभरी एक रेखा।
न घट पाई न मिट पाई संघर्षशील
दर्द भरी शोषित शोषण की वह रेखा।
आँखों से झलकती कलेजा में तड़पती
मिट नहीं सकी समाज से भेदभरी वह रेखा।
भाग्य संयोग सहज ही सब नहीं लिखता
जीवन निर्वेद में है कुछ तो लिखता ही होगा।
असुंदर अनिष्ट कहता मानव मानव को
पथ प्रगति का कह दर्द भी रोता ही होगा।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण अप्रतिम भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंरचना का हर बन्ध संवेदनशील भावनाओं को उकेरता ।
बेहतरीन सृजन ।
सादर आभार मीना दीदी 🙏
हटाएंभाग्य संयोग सहज ही सब नहीं लिखता
जवाब देंहटाएंजीवन निर्वेद में है कुछ तो लिखता ही होगा।
असुंदर अनिष्ट कहता मानव मानव को
पथ प्रगति का कह दर्द भी रोता ही होगा।
बहुत ही सुंदर,संवेदनाओं से भरी,मार्मिक सृजन.....
सादर आभार कामिनी दीदी
हटाएंबहुत देर अपलक हम ख़ामोशी से
जवाब देंहटाएंदेखा करे एकटक उनके जीवन को।
कंकड़-पत्थर कह उन्हें फिर धीरे से कहे
हाँ,लिख दी है जेठ में बरसती धूप को।
बहुत खूब प्रिय अनिता | मानवीय संवेदनाओं को छूते बिन्दुओं का सुंदर शब्दांकन !!!सस्नेह शुभकामनाएं|
सादर आभार रेणु दीदी 🙏
हटाएंमानवीय संवेदनाएँ जब खंडित होती हैं दर्द स्वयं ही रिसता है ...
जवाब देंहटाएंहर बंध कुछ समनेदनाओं की पोटली खोलता हुआ ...
कई मान्यताएँ रहती हैं समाज में ... लोग हैं तो भिन्नता है ... विचार हैं अपने अपने और दर्द भी है शोषण भी है ...
सुंदर भावव्यक्ति ...
"पर्वत से अटल झुलसते सुविचारों को.......... मन के कोने में भरती मानवता को"मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति लाज़बाब है।
जवाब देंहटाएंविचार कभी अटल नहीं होते।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय शायद समय ने तभी चुपी साधने को कहा.सकारात्मकता और अटलता ही ध्ये है मेरे जीवन का.ब्लॉग पर आपका स्वागत है.मनोबल बढ़ाने हेतु सादर आभार .
हटाएंUnknown महोदय/महोदया
हटाएं@विचार कभी अटल नहीं होते
–तभी तो थाली के बैगन होते
–मत लेते किसी दल के होकर राज करना चाहते किसी दल के होकर यानी दल बदलू जो होते
वरना सत्य तो अटल है
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14 -7 -2020 ) को "रेत में घरौंदे" (चर्चा अंक 3762) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
सुन्दर शब्द चयन।
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंन घट पाई न मिट पाई संघर्षशील
जवाब देंहटाएंदर्द भरी शोषित शोषण की वह रेखा।
आँखों से झलकती कलेजा में तड़पती
मिट नहीं सकी समाज से भेदभरी वह रेखा।
और शायद ये भेदभरी रेखा कभी मिटेगी भी नहीं कभी चाहे कितना भी संघर्ष कर लें...ऐसी अपेक्षा और दर्द ही देगी
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
आ अनीता जी, बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंन घट पाई न मिट पाई संघर्षशील
जवाब देंहटाएंदर्द भरी शोषित शोषण की वह रेखा।
आँखों से झलकती कलेजा में तड़पती
मिट नहीं सकी समाज से भेदभरी वह रेखा। बेहतरीन रचना बहना।
मानवीय संवेदनाओं का चित्रण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
शोषण , शोषित शोषक कौन? बहुत से रूप हैं ! हर क्षेत्र में, हर वर्ग में गहन अवलोकन करती गहन रचना साथ ही चोट करती है मर्म पर...
जवाब देंहटाएं"कंकड़-पत्थर कह उन्हें फिर धीरे से कहें
हाँ,लिख दी है जेठ में बरसती धूप को। "
हर पीड़ा पर कलमकारों की कलम ही चलती हैं संवेदनाएं कितनी जगती है,,??
निशब्द हूँ दी आपने रचना का गहराई से अवलोकन किया.यहाँ मैंने धूप सी अदृश्य हर उस रेखा को क़लम से उकेरने की कोशिश की है जो हर क्षेत्र में विध्यमान है एक दायरा जो समाज का प्रत्येक वर्ग बना रहा है स्वयं को स्थापित करने हेतु और बड़प्पन यह की हाँ लिख दिया है.मैंने दाइत्व का निर्वहन लिखने मात्र से या जख़्म को कुरेदने मात्र से या जहाँ संवेदना शुष्क हो चुकी है वहाँ झूठ की मन गड़ंत कहानी लिख दाइत्व जताना बहुत प्रश्न थे अंतस में स्वयं से ही पूछ बैठी ...
हटाएंहर पीड़ा पर कलमकारों की कलम ही चलती हैं संवेदनाएं कितनी जगती है,,?? इस व्याख्या हेतु बताइए आपके पैर कहाँ है मेरा प्रणाम स्वीकारे.इसी विचार के सहारे यह रचना लिखी है मैंने.संवेदना का सैलाब बहाते सभी है स्वयं में झाँकते कितने है? ...तहे दिल से आभार आदरणीय दीदी आप का मेरे ब्लॉग पर आना ही मेरे लिए सौभाग्य की बात है.आशीर्वाद बनाए रखे .
सादर
आदरणीय दी दिंगंबर नासवा जी,आदरणीया उर्मिला दीदी,आदरणीया विभा दीदी,आदरणीय कमीनी दीदी,आदरणीय शास्त्री जी,आदरणीय रविंद्र जी,आदरणीय नितीश जी,आदरणीय जोशी जी,आदरणीय सुधा देवरानी दीदी,आदरणीय ब्रजेंद्र जी,आदरणीय अनुराधा दीदी,आदरणीय राकेश जी और आदरणीय मीना दीदी आप सभी का सहयोग स्नेह आशीर्वाद मेरे लेखन की ऊर्जा है.मनोबल बढ़ाने हेतु तहे दिल से आभार आप सभी का.
जवाब देंहटाएंसादर