विश्वास की गगरी से छलकती है
जीती है वह भी रोज़ थोड़ा-थोड़ा
कभी अपनों कभी दूसरों के लिए
कि बना रहे अस्तित्त्व उसका भी।
मरती भी है 'मैं' धरातल पर
जब उसके त्याग को अनदेखा कर
उसकी धड़कनों को कुचला जाता है।
पेड़ों की टहनियों से झाँकती है
कभी धूप कभी साँझ बनकर।
पत्तों की कोर पर अटके विश्वास की
फिसलन से विचलित होती है वह भी
नाउम्मीदी के दलदल में लिप्त होने से
जीवन गलियारे के अदृश्य अँधेरे से।
कभी-कभी समर्पण से प्रभावित होती है
पानी की एक बूँद से जो बाँधे रखती है
एकनिष्ठ अस्थि-पिंजर एक ठूँठ से
जो कब का संवेदनारहित हो चुका है
जिसमें मर चुका है प्रेम वर्षों पहले
सूख चुका है जीवन जिसका एक अरसे से।
अनायास ही मिलना चाहती है मिट्टी में,
उस मिट्टी में जो तपती है अहर्निश
धरती में जो पसीजती है जीवनभर
अनदेखेपन की तह में तपती निर्मोही-सी।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(17-07-2020) को
"सावन आने पर धरा, करती है श्रृंगार" (चर्चा अंक-3765) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
आस की एक बूँद
जवाब देंहटाएंविश्वास की गगरी से छलकती है
जीती है वह भी रोज़ थोड़ा-थोड़ा
कभी अपनों कभी दूसरों के लिए
कि बना रहे अस्तित्त्व उसका भी।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना प्रिय अनीता। आशा पर ही तो संसार जीवित है।
प्रतीकों के माध्यम निस्सरित सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना दीदी,आदरणीय रेणु दीदी,आदरणीय शास्त्री जी,मनोबल बढ़ाने हेतु तहे दिल से आभार आप सभी का.
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद बनाए रखे.
सादर
एकनिष्ठ अस्थि-पिंजर एक ठूँठ से
जवाब देंहटाएंजो कब का संवेदनारहित हो चुका है
जिसमें मर चुका है प्रेम वर्षों पहले
सूख चुका है जीवन जिसका एक अरसे से
सार्थक संवेदनशील रचना
सादर आभार आदरणीय राकेश जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दिव्य जी मंच पर स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
सार्थक बिंबों और प्रतीकों से सुसज्जित भावप्रवण सृजन जो प्रकृति और जीवन के बीच साम्य और अंतरविरोधों को ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त करती है।
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्त करती है। = अभिव्यक्त करता है।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय रविंद्र जी.मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु.आशीर्वाद बनाए रखे.
जवाब देंहटाएंसादर
पत्तों की कोर पर अटके विश्वास की
जवाब देंहटाएंफिसलन से विचलित होती है वह भी
नाउम्मीदी के दलदल में लिप्त होने से
जीवन गलियारे के अदृश्य अँधेरे से।
सुंदर रचना ....
सादर आभार आदरणीय विकास नैनवाल जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर
वाह सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
मरती भी है 'मैं' धरातल पर
जवाब देंहटाएंजब उसके त्याग को अनदेखा कर
उसकी धड़कनों को कुचला जाता है।
पेड़ों की टहनियों से झाँकती है
कभी धूप कभी साँझ बनकर।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी
सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
वाह आस की एक बूंद ।
जवाब देंहटाएंशानदार शब्द संयोजन, अभिनव वर्जनाएं।
सुंदर प्रतीक ,रहस्यमय बिंब,गहन भाव पक्ष सुंदर सृजन।
तहे दिल से आभार आदरणीय कुसुम दीदी। आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इंतजार रहता है। मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंएक बार फिर दिल से आभार। आशीर्वाद बनाए रखे.
आस की एक बूँद
जवाब देंहटाएंविश्वास की गगरी से छलकती है
जीती है वह भी रोज़ थोड़ा-थोड़ा
कभी अपनों कभी दूसरों के लिए
कि बना रहे अस्तित्त्व उसका भी।
वाह!!!
आश की एक बूँद!
अद्भुत शब्दसंयोजन..
बहुत ही सुन्दर भावप्रवण लाजवाब सृजन।
आभारी हूँ दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
आस की बूंद विश्वास की गगरी, अतिसुन्दर शब्द संयोजन एवम सृजन ... अद्भुद
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे .
सादर