अनासक्त भाव से भर जाऊँ
हे ! प्रभु ऐसी भक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
धूप द्वेष की न तृष्णा की साँझ
समन्वय की भोर जगाए है।
आरोह-अवरोह का अंत नहीं
अंत समय तक मड़राए है।
मन डिगे न मानवता से मेरा
हे!प्रभु अंतस में ऐसी अनुरक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
दैहिक दर्द बढ़े पल-पल
किंचित मुझ में क्षोभ न हो।
रोम-रोम पीड़ा से भर दो
यद्धपि मन में मेरे विक्षोभ न हो।
हतभाग्य विचार न छूए मन को
हे!प्रभु ऐसी शुभ अभिव्यक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु .
हटाएंसादर
सुन्दर और प्रेरक गीत।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
वाह सुन्दर प्रवाह।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत ही प्यारी और गहरी प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंआभार हूँ अनंता जी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ज्योति दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
अनासक्त भाव से भर जाऊँ
जवाब देंहटाएंहे ! प्रभु ऐसी भक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
बहुत सुन्दर सृजन ...,
सादर आभार आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
जवाब देंहटाएंमुझ में इतनी शक्ति दो।
बहुत ही सुंदर प्रार्थना अनीता जी
सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
मन डिगे न मानवता से मेरा
जवाब देंहटाएंहे!प्रभु अंतस में ऐसी अनुरक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
वाह!!!!
सुन्दर कोमल भावों से सजी लाजवाब प्रार्थना।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंसादर
दैहिक दर्द बढ़े पल-पल
जवाब देंहटाएंकिंचित मुझ में क्षोभ न हो।
रोम-रोम पीड़ा से भर दो
यद्धपि मन में मेरे विक्षोभ न हो।
हतभाग्य विचार न छूए मन को
हे!प्रभु ऐसी शुभ अभिव्यक्ति दो।
कर्म-कष्ट सहूँ आजीवन बस
मुझ में इतनी शक्ति दो।
बहुत ही सुंदर भावों से सजी यह रचना ... ईश वंदना कहूँ तो भी असत्य न होगा।
बधाई एवम शुभकामनाएं
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु .आशीर्वाद बनाए रखे .
हटाएंसादर
सरल लोक कल्याण के मंजुल भाव लिए पावन सी प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
बहुत बहुत शुक्रिया आप का आदरणीय कुसुम दीदी .
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा