कविता लंबा सफ़र तय करती है।
विचारों की गुत्थी पहले सुलझाती
बिताए प्रत्येक लम्हे से मिलती है।
समूचे जीवन को कुछ ही पलों में
खँगालती फिर सुकून से हर्षाती है।
घर की चहल-पहल से इतर उसे
मायूस मन ख़ाली कोना है भाता।
बग़ीचे में फैली हरियाली से नहीं
उसका सूखे नीम से है गहरा नाता।
कोने में पड़ी टूटी बेंच की पीड़ा लिखती
उस पर साया देखा-सा नज़र है आता।
फूलों की माला-सा गूँथती दिन-पथ
साँझ ढले चुभन स्मृतियों में शूल-सी उभर आती है।
झरते पारिजात का गूँजता अनहद नाद
हिचकी संग नम आँखों की सुर-लहरी बन जाता है।
तारों की चमक अँजुरी में भरती
बिखरकर धरा पर मुस्कुराने लगती है।
उसके इंतज़ार का लिखती खलता ख़याल
ज़िम्मेदारियाँ उसे उसी पल चुरा ले जातीं है।
टूटती बिखरती लड़खड़ाती लेखनी
उम्मीद की गगरी में कविता के शब्द भर जाती है।
क़लम से काग़ज़ पर उतरने से पहले
कविता लम्बा सफ़र तय करती है।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
कविता काग़ज़ पर उतरने से पहले संवेदना के धरातल पर विचरती है
जवाब देंहटाएंऔर चिंतन करते हुए कल्पना के साथ भावों को व्यक्त करने के लिए बिम्बों,प्रतीकों एवं शब्दों की सार्थक
श्रृंखला का निर्माण करती है। रचयिता को किस प्रकार की वैचारिक एवं भावात्मक ऊहापोह से गुज़रना
पड़ता है इसका ख़ूबसूरती से ज़िक्र करती भावप्रवण काव्यात्मक ताज़गी बिखेरती रचना।
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। आशीर्वाद बनाए रखे ।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दी सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु।
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय दिलबाग सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 23 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय रविंद्र जी सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय जोशी जी सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
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बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय अनुराधा दीदी ।
हटाएंJee kar likhi hui rachna svth hi bol padti hai .
जवाब देंहटाएंजी सही आपने सार्थक विचार ।
हटाएंकविता कागज़ पर उतरने रैक की पूरी पीड़ा/सोच/इतिहास का बख़ूबी बयान ...
जवाब देंहटाएंबधाई इस अभिव्यक्ति पर ...
आभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत खूब प्रिय अनीता ! कमाल का लिखा | सचमुच कविता इन्ही स्थितियों से गुजर कर कागज पर अस्तित्व में आती है | सस्नेह शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीदी।
हटाएंहमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढ़ाती है आपका ब्लॉग मेरे लिए अत्यंत ख़ुशी का पल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे ।
सादर
कलम से काग़ज़ पर उतरने से पहले वाक़ई कविता लम्बा सफ़र तय करती है, कोई शक़ नहीं है इसमें । आपने जो कहा है, सटीक कहा है ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर