फिर भी दिनभर पानी बरसता रहा।
बरसते पानी ने कहा बरसात नहीं है
बरसात भिगोती है गलाती नहीं।
सीली दीवारों पर चुप्पी की छाया थी
न सूरज निकला न साँझ ढली।
गरजे बादल चमकती रही बिजली
न पक्षी चहके न घोंसले से निकले।
दौड़ते पानी से गलियाँ सिकुड़ी
धुल गए वृक्ष झरते पानी के अनुराग से।
धारा की शोभा सुशोभित हुई
नव किसलय के शृंगार से।
मैं एकटक अपलक ताकती रिमझिम फुहार को
भार बादलों का धरणी सहती रही।
रसोई से आँगन और बाज़ार की दूरी में मैं भीगती
मुठ्ठीभर जीवन अँजुरी से रिसता रहा।
मुठ्ठीभर जीवन अँजुरी से रिसता रहा।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 24-07-2020) को "घन गरजे चपला चमके" (चर्चा अंक-3772) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर
आ अनीता जी, बहुत सुंदर रचना!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
सीली दीवारों पर चुप्पी की छाया थी
जवाब देंहटाएंन सूरज निकला न साँझ ढली।
गरजे बादल चमकती रही बिजली
न पक्षी चहके न घोंसले से निकले।... इस कविता से अपना बचपन याद आ गया ...कि ''अम्मा ज़रा देख तो ऊपर चले आ रहे हैं बादल'' वाला .. बहुत धन्यवाद अनीता जी ... वहां बचपन की यादों में वापस ले जाने के लिए
सादर आभार आदरणीय अलकनंदा दी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
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मैं एकटक अपलक ताकती रिमझिम फुहार को
जवाब देंहटाएंभार बादलों का धरणी सहती रही।
रसोई से आँगन और बाज़ार की दूरी में मैं भीगती
मुठ्ठीभर जीवन अँजुरी से रिसता रहा।
बहुत ही सुंदर,मनभावन सृजन अनीता जी
सादर आभार कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंआभार हूँ आदरणीय ज्योति बहन मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु ।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है.......http://halchalwith5links.blogspot.com/ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।
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दौड़ते पानी से गलियाँ सिकुड़ी
जवाब देंहटाएंधुल गए वृक्ष झरते पानी के अनुराग से।
धारा की शोभा सुशोभित हुई
नव किसलय के शृंगार से।
बहुत सुंदर रचना प्रिय अनीता सैनी जी 🙏🍁
सादर आभार आदरणीया वर्षा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे ।
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मैं एकटक अपलक ताकती रिमझिम फुहार को
जवाब देंहटाएंभार बादलों का धरणी सहती रही।
रसोई से आँगन और बाज़ार की दूरी में मैं भीगती
मुठ्ठीभर जीवन अँजुरी से रिसता रहा।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण काव्य चित्र प्रिय अनीता !
आभारी हूँ आदरणीय रेणु दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
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वाह सखी बेहतरीन सृजन ।बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सुजाता बहना मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
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वाह!सखी ,क्या बात है ...बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दी।
हटाएंभावप्रवण मनमोहक सृजन।
जवाब देंहटाएंनवीन बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग रचना की ख़ूबसूरती बढ़ाने में सक्षम है।
बरसात का अनूठे अंदाज़ का चित्रण।
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
आदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता।
दौड़ते पानी से गलियाँ सिकुड़ी
धुल गए वृक्ष झरते पानी के अनुराग से।
धारा की शोभा सुशोभित हुई
नव किसलय के शृंगार से।
प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन। इतनी सुंदर रचना के लिए आभार।
सादर आभार अनंता जी ।
हटाएंओ हो! बहुत सुंदर कोमल शब्दों में सुंदर प्रतीकों से सजी अभिनव रचना।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी आपके आने से संबल मिला।
हटाएंमनोबल बढ़ाने हेतु सादर आभार ।
सादर