ज़िंदगियाँ उलझन में हैं ...
परिवेश में नमी बेचैनी की है
ख़ेमे में बँटा इंसान
मोम-सा पिंघलने लगा
मुँह पर बँधा है मास्क तभी
कुछ लोग
आँखों पर सफ़ेद पट्टी बाँधने लगे
और कहने लगे
देखना हम इतिहास रचेंगे
शोहरत के एक और
पायदान पर क़दम रखेंगे
वे आत्ममुग्ध हैं यह देख
अहंकार का पैमाना बढ़ने लगा
'मैं' का भाव बढ़ा
सर्वोपरि सर्वज्ञाता सर्वशक्तिमान हुआ
बच्चे बूढ़े जवान औरत पुरुष कुछेक की
रक्त वाहिनियों में
ये ही भाव प्रवाहित होने लगा
दर्द कराहता रहा
ग़रीब जन का जनपथ पर
उसी की चीख़ के
सभी सवाल शून्य होने लगे
भव्यता सँजोते स्वप्नों में
यथार्थ को स्वप्नरुपी पँख लगाने लगे
कुछ नुमाइंदे
धर्म के नाम पर नफ़रत बाँटने लगे।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
परिवेश में नमी बेचैनी की है
ख़ेमे में बँटा इंसान
मोम-सा पिंघलने लगा
मुँह पर बँधा है मास्क तभी
कुछ लोग
आँखों पर सफ़ेद पट्टी बाँधने लगे
और कहने लगे
देखना हम इतिहास रचेंगे
शोहरत के एक और
पायदान पर क़दम रखेंगे
वे आत्ममुग्ध हैं यह देख
अहंकार का पैमाना बढ़ने लगा
'मैं' का भाव बढ़ा
सर्वोपरि सर्वज्ञाता सर्वशक्तिमान हुआ
बच्चे बूढ़े जवान औरत पुरुष कुछेक की
रक्त वाहिनियों में
ये ही भाव प्रवाहित होने लगा
दर्द कराहता रहा
ग़रीब जन का जनपथ पर
उसी की चीख़ के
सभी सवाल शून्य होने लगे
भव्यता सँजोते स्वप्नों में
यथार्थ को स्वप्नरुपी पँख लगाने लगे
कुछ नुमाइंदे
धर्म के नाम पर नफ़रत बाँटने लगे।
© अनीता सैनी 'दीप्ति'
ज़िंदगियाँ उलझन में हैं ...
जवाब देंहटाएंपरिवेश में नमी बेचैनी की ,,,,,,,,आपकी ब्लॉग बहुत अच्छी लगी ।बहुत अच्छा लिखा है आपने ।आदरणीया प्रणाम
सादर आभार आदरणीय दी ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 31-07-2020) को "जन-जन का अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3779) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत शुक्रिया मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
वाह , शानदार अभिव्यक्ति है , आज इसकी बेहद जरूरत भी है ! बधाई !!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया मेरी ऊर्जा है।
हटाएंमनोबल बढ़ाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
बिल्कुल सही और सटीक !
जवाब देंहटाएंउसी की चीख़ के
सभी सवाल शून्य होने लगे
भव्यता सँजोते स्वप्नों में
यथार्थ को स्वप्नरुपी पँख लगाने लगे।
सब देख समझ रहे हैं और सब चुप हैं।
तहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी संबल मिला आपकी प्रतिक्रिया से।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
'मैं' का भाव पहले ही क्या कुछ कम था जो इस काल में तो दिन-ब-दिन, पहर-दर-पहर बढ़ता ही जा रहा है । चारों ओर छाए मौत के ख़ौफ़ से भी ज़्यादा बुरा है यह । पर क्या करें ? किस-किस को समझाएं ? और कैसे समझाएं ?
जवाब देंहटाएंसुंदर विचारों से रचना की सारगर्भित समीक्षा हेतु सादर आभार आदरणीय सर। सही कहा आपने समय बहुत ही भयावह आने वाला है।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
भव्यता सँजोते स्वप्नों में
जवाब देंहटाएंयथार्थ को स्वप्नरुपी पँख लगाने लगे
कुछ नुमाइंदे
धर्म के नाम पर नफ़रत बाँटने लगे।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
सादर आभार ज्योति बहन मनोबल बढ़ाने हेतु ।
हटाएंसादर
समकालीन परिस्थितियों पर तीखी बात।
जवाब देंहटाएंहालात से प्रभावित होकर क़लम चल पड़ती है और कुछ ऐसा कि
समाज उस पर मंथन करे, अपने भीतर मानवता का भाव पुष्ट करता रहे।
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु ।
हटाएंसादर
सुंदर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
कुछ लोग
जवाब देंहटाएंआँखों पर सफ़ेद पट्टी बाँधने लगे
और कहने लगे
देखना हम इतिहास रचेंगे
शोहरत के एक और
पायदान पर क़दम रखेंगे
इसी शोहरत की चाह ने इंसानियत को निगल दिया
समसामयिक हालातों पर बहुत ही सुन्दर चिन्तनपरक
लाजवाब सृजन।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सटीक अभिव्यक्ति.. चिन्तनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर