पता नहीं कब?
कौन ?
किससे मिले...
भोर की वेला में
या ढलती साँझ में मिले
गड़रिए के लिबास में
ओढ़े भावनाओं सरीखी
सजा अपनत्त्व का धरातल
विचारों की गठरी लिए मिले ...
ठीक वहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ वहीं...देखना तुम
उभर आएगी
गंभीर वृक्ष की शीतल छाँव
उसमें उलझी-सी टोह
फिर वही लताओं की डोर-सी लगेगी
कभी अनुभव-सिरों पर बैठी ठौर-सी मिलेगी...
यह सही है
उस समय तुम अकेले रहोगे
फ़ासले
चिलचिलाती तेज़ धूप-से लगेंगे
सब ओर फैला होगा
अविश्वास का तपता रेगिस्तान
तब तुम तलाशना
थार-से मरुस्थल में
सीपी-सा अटूट विश्वास...
वह जीवित है
चमक है उसकी आँखों में
समेट लेना तुम
गहरी अन्तःकरण की
तृषा-सी
ज्यों तारों भरा आसमान
बैठा हो आँचल फैलाए
तुम्हारे सिर्फ़ तुम्हारे लिए ।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
कौन ?
किससे मिले...
भोर की वेला में
या ढलती साँझ में मिले
गड़रिए के लिबास में
ओढ़े भावनाओं सरीखी
सजा अपनत्त्व का धरातल
विचारों की गठरी लिए मिले ...
ठीक वहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ वहीं...देखना तुम
उभर आएगी
गंभीर वृक्ष की शीतल छाँव
उसमें उलझी-सी टोह
फिर वही लताओं की डोर-सी लगेगी
कभी अनुभव-सिरों पर बैठी ठौर-सी मिलेगी...
यह सही है
उस समय तुम अकेले रहोगे
फ़ासले
चिलचिलाती तेज़ धूप-से लगेंगे
सब ओर फैला होगा
अविश्वास का तपता रेगिस्तान
तब तुम तलाशना
थार-से मरुस्थल में
सीपी-सा अटूट विश्वास...
वह जीवित है
चमक है उसकी आँखों में
समेट लेना तुम
गहरी अन्तःकरण की
तृषा-सी
ज्यों तारों भरा आसमान
बैठा हो आँचल फैलाए
तुम्हारे सिर्फ़ तुम्हारे लिए ।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
कभी-कभी विश्वास भरे शब्द सफ़र आसानकर देते है।
जवाब देंहटाएंमिलने वाले भी इंसान ही होते है।कुछ हालात कुछ समय के मारे होते है। तूम बहुत अच्छा लिख रही हो लिखती रहो ।कुछ अपने कुछ अपनों के लिए । मेरी शुभकामनाएं तुम्हें ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर
गंभीर वृक्ष की शीतल छाँव
जवाब देंहटाएंउसमें उलझी-सी टोह
फिर वही लताओं की डोर-सी लगेगी
कभी अनुभव-सिरों पर बैठी ठौर-सी मिलेगी...
यह सही है
उस समय तुम अकेले रहोगे
फ़ासले
चिलचिलाती तेज़ धूप-से लगेंगे..
बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी 👌
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
गहन विचारों के तारतम्य में रची गयी सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंफ़ासले चिलचिलाती तेज़ धूप-से लगेंगे
जवाब देंहटाएंसब ओर फैला होगा अविश्वास का तपता रेगिस्तान
तब तुम तलाशना थार-से मरुस्थल में
सीपी-सा अटूट विश्वास...
वह जीवित है चमक है उसकी आँखों में
समेट लेना तुम गहरी अन्तःकरण की
तृषा-सीज्यों तारों भरा आसमान
बैठा हो आँचल फैलाए
तुम्हारे सिर्फ़ तुम्हारे लिए ।
बहुत ही सुन्दर अंतस को छूती भावपूर्ण रचना
वाह!!!!
आभारी हूँ दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
शानदार..!
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
गहन सोच
जवाब देंहटाएंवाह
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंथार-से मरुस्थल में
सीपी-सा अटूट विश्वास...
वह जीवित है
चमक है उसकी आँखों में
समेट लेना तुम
अद्भुत ...मन्त्रमुग्ध करता विश्वास.. लाजवाब लेखन । लिखती रहिए । स्वप्निल संसार उकेरती है आपकी लेडनी ।
आभरी हूँ आदरणीय मीना दी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु।संबल मिला आपके आने से।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर रचना अनिता जी प्रत्येक पक्तियां लाज़बाब है
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह बहुत ही बेहतरीन सृजन ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी आपकी प्रतिक्रिया मेरी ऊर्जा है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
सुंदर बिंबों और प्रतीकों में सजी बेहतरीन व्यंजना जो अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट रूप है।
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएँ कविता के सौंदर्य का उदाहरण बनतीं हैं।
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
अनुपम सृजन बहूत सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंअनुपम सृजन बहूत सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर