अखबार के खरदरे पन्नों की
हैडिंग बदली न मौलिक तस्वीर
कई वर्षों से ढ़ोते आए हैं ये
बाढ़ के पानी का बोझिल भार
न पानी ने बदला रास्ता अपना
न बहने वालो ने बदले घरों ने द्वार
प्रत्येक वर्ष बदलती पानी की धारा
कभी पूर्व तो कभी पश्चिम
बिन बरसात ही डूबते घर-बार
निर्बोध मन-मस्तिष्क
देह के अस्थि-पिंजर बह जाते
कटाव समझ के वृक्ष का होता
आदि-यति सब बहते साथ
कुछ बंजारे बीज संघर्ष के बोते
कुछ खोते जीवन की सूक्ष्म मेंड़
न उठ पाते न उठने देते नियति के फेर
उमसाए सन्नाटे में बढ़ी बाढ़ की डोर ।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
एक गहरी त्रादसी है जो झेलते हैं ...
जवाब देंहटाएंआभाव या किस्मत की मार या ... मनुष्य का क्रूर व्यवहार ...
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर प्रणाम
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
कई वर्षों से ढ़ोते आए हैं ये
जवाब देंहटाएंबाढ़ के पानी का बोझिल भार
न पानी ने बदला रास्ता अपना
न बहने वालो ने बदले घरों ने द्वार
मर्मस्पर्शी चिन्तनपरक सृजनात्मकता ।
तहे दिल से आभार दी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बाढ़ एक प्राकृतिक विभीषिका है जो लोगों का जीवन तबाह करती रहती है। बाढ़ के कई स्वरुप हैं जिन्हें व्यंजना के माध्यम से अभिव्यक्त करने का सार्थक प्रयास किया गया है। आपदाओं की बाढ़ हो या युद्ध में लाशों की बाढ़ जीवन पर क़हर बनकर टूटती है बाढ़।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बाढ़ की विभीषिका पर सटीक सहज चित्रण मन का अरूण कोना द्रवित सा रचना में झलक रहा है।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
आपने इस रचना के माध्यम बाढ़ की नियमित त्रासदी पर गहरा कटाक्ष किया है। प्रतिवर्ष बाढ की विभीषिका से अवगत होते हुए भी इसके बचने के दीर्घकालिक उपाय अब तक नही किए गए हैं, जबकि हमारे मीडिया के लिए यह मात्र एक विषय बनकर रह गया है। यह असंवेदना, एक संवेदनशील इन्सान के लिए असह्य होता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संवेदनशील रचना हेतु साधुवाद व शुभ-कामनाएँ।
आभारी हूँ सर आपकी आपकी प्रतिक्रिया मिली। मनोबल बढ़ाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसादर
अखबार के खरदरे पन्नों की
जवाब देंहटाएंहैडिंग बदली न मौलिक तस्वीर
कई वर्षों से ढ़ोते आए हैं ये
बाढ़ के पानी का बोझिल भार
न पानी ने बदला रास्ता अपना
न बहने वालो ने बदले घरों ने द्वार
प्रत्येक वर्ष बदलती पानी की धारा
कभी पूर्व तो कभी पश्चिम
बिन बरसात ही डूबते घर-बार
सही कहा एट खबर और कुछ नहीं ...इस बार से उस बार...कुछ नहीं बदलता...बस स्थिति ज्यूँ की त्यूँ...
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन
वाह!!!
तहे दिल से आभार प्रिय सुधा दी।मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर