रविवार, अगस्त 30

गुज़रे छह महीने



गुज़रे छह महीनों ने पी है अथाह पीड़ा 
 पिछले सौ साल की त्रासदी की।
पीली पड़ चुकी है छरहरी काया इनकी 
हर दिन की सिसकियाँ सजी हैं ज़ुबाँ पर।

तुम्हें देख एक बार फिर हर्षाएँगे ये दिन  
छिपाएँगे आँखों के कोर में खारा पानी।
कभी काजल तो कभी सुरमा लगाएँगे 
बिंदी बर्दास्त न करेगी तुम्हें हर बात बताएगी। 

इनकी ख़ामोशी में तलाशना शब्द तुम 
मोती की चमक नहीं सीपी की वेदना समझना तुम। 
छह महीने देखते ही देखते एक साल बनेगा 
पड़ता-उठता फिर दौड़ता आएगा यह वर्ष 
इसकी फ़रियाद सुनना तुम।

भविष्य बन मिलोगे यायावर की तरह तुम 
कुछ पल बैठोगे बग़ल में अनजान की तरह। 
ये दिन-महीने तुम्हें अपने ज़ख़्म दिखाएँगे
  मरहम लाने का बहाना बनाकर
 उन्मुक्त पवन की तरह बह जाओगे तुम। 

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. निशब्द करती अनुपम रचना जिससे भावों का दरिया मंथर गति से बह रहा है । अति सुन्दर ।

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    1. आभारी हूँ प्रिय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (31अगस्त 2020) को 'राब्ता का ज़ाबता कहाँ हुआ निहाँ' (चर्चा अंक 3809) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  4. बेहतरीन सृजन सखी।बहुत ही सुंदर और सार्थक।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सुजाता बहन मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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    1. सादर आभार सर आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  6. समय ऐसे ही बीत जाएगा ... छः से पूरा साल भी बीत जाएगा ... नए पल नया समय भी आएगा ... और जुड़ जाएगा नया संसार फिर ...

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    1. आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया मिली।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. बेहतरीन रचना सखी।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया बहना।यों ही साथ बना रहे।
      सादर

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  8. इनकी ख़ामोशी में तलाशना शब्द तुम
    मोती की चमक नहीं सीपी की वेदना समझना तुम।
    छह महीने देखते ही देखते एक साल बनेगा
    पड़ता-उठता फिर दौड़ता आएगा यह वर्ष
    इसकी फ़रियाद सुनना तुम।
    बहुत खूब
    समय तो बीत ही जायेगा।पर जख्म रह जायेंगे...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  9. भविष्य बन मिलोगे यायावर की तरह तुम
    कुछ पल बैठोगे बग़ल में अनजान की तरह।
    ये दिन-महीने तुम्हें अपने ज़ख़्म दिखाएँगे
    मरहम लाने का बहाना बनाकर
    उन्मुक्त पवन की तरह बह जाओगे तुम।

    बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन प्रिय अनीता

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय कामिनी दी।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  10. बेहतरीन रचना सखी

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय दी आप ब्लॉग पर आए अत्यंत हर्ष हुआ।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  11. कोरोना काल की असह्य वेदना को समाये एक अत्यंत मार्मिक रचना के लिये साधुवाद स्वीकारें...

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर प्रणाम

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