मृगमरीचिका-सा भ्रम जाल फैलाती
कभी धूप-सी जलाती है ज़िंदगी।
बरसात बन भिगोती है कभी
पेड़-सा आसरा बनती है ज़िंदगी।
सँकरी गलियों के मोड़-सी लगती
राह दिखाती है हाथ बढ़ाती हुई।
घनघोर निराशा में पीठ थपथपाती
तुम्हारी परछाई-सी है ज़िंदगी।
राह दिखाती है हाथ बढ़ाती हुई।
घनघोर निराशा में पीठ थपथपाती
तुम्हारी परछाई-सी है ज़िंदगी।
दिवस को धकेलती-सी लगती
साँझ ढले लुटाती है अपनत्त्व।
कभी हर दिन का हिसाब माँगती
फिर अँधरे में गुम हो जाती है ज़िंदगी।
साँझ ढले लुटाती है अपनत्त्व।
कभी हर दिन का हिसाब माँगती
फिर अँधरे में गुम हो जाती है ज़िंदगी।
कभी आघात की बौछार करती
कभी अनुभव की सौग़ात थमाती
तुहिन कणों-सी चमक लिए आती
दामन में सिमट हर्षाती है ज़िंदगी।
कभी अनुभव की सौग़ात थमाती
तुहिन कणों-सी चमक लिए आती
दामन में सिमट हर्षाती है ज़िंदगी।
दिनभर की बनती है थकान
कभी अनायास मुस्कुराने लगती
तुम्हारे आने की आहट लिए
अरमान बन खिल जाती है ज़िंदगी।
कभी अनायास मुस्कुराने लगती
तुम्हारे आने की आहट लिए
अरमान बन खिल जाती है ज़िंदगी।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर। आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
हटाएंसादर प्रणाम
जीवन के विभिुन्न रूपों का अच्छा चित्रण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंबहुत खूबसूरत सृजन । हर बन्ध पर वाह ही निकलता है अन्तर्मन से । जिन्दगी के उतार-चढाव को दर्शाती अनुपम रचना ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ मीना दी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
दिवस को धकेलती-सी लगती
जवाब देंहटाएंकभी साँझ ढले लुटाती है अपनत्त्व।
कभी हर दिन का हिसाब माँगती
अँधरे में गुम हो जाती है ज़िंदगी।
बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी
तहे दिल से आभार कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ज्योति बहन उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंदिनभर की बनती है थकान
जवाब देंहटाएंकभी अनायास मुस्कुराने लगती
तुम्हारे आने की आहट लिए
अरमान बन खिल जाती है ज़िंदगी।
बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति अनीता |
जी बहुत बहुत शुक्रिया ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर
ज़िंदगी के विभिन्न आयाम दर्शाने का उत्तम प्रयास है। ज़िंदगी को कविता में समेटना सहज नहीं है सबका अपना-अपना नज़रिया है उसे समझने का फिर भी कवयित्री ने संक्षेप में ज़िंदगी की कश्मकश को शब्दों में पिरोने का विचारणीय एहसास अभिव्यक्त किया है।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया से रचना का मर्मस्पष्ट करने हेतु। मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार।
हटाएंसादर प्रणाम
वाह!सुंदर भावाभिव्यक्ति सखी ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय दी इस अपार स्नेह हेतु।
हटाएंकभी आघात की बौछार करती
जवाब देंहटाएंकभी अनुभव की सौग़ात थमाती
तुहिन कणों-सी चमक लिए आती
दामन में सिमट हर्षाती है ज़िंदगी।
बहुत सुंदर रचना
सादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर है
शुक्रिया ।
हटाएंसँकरी गलियों के मोड़-सी लगती
जवाब देंहटाएंराह दिखाती है हाथ बढ़ाती हुई।
घनघोर निराशा में पीठ थपथपाती
तुम्हारी परछाई-सी है ज़िंदगी।
वाह!!!!
कोई अपना जब अपनी जिन्दगी बन जाय
तो आसान हो जाती है जिन्दगी
फिर प्यार मनुहार और इंतजार में
यूँ ही गुजर जाती है जिंदगी
बहुत ही भावपूर्ण.... अपनों की यादों और मन के भावों को इतनी खूबसूरती से सजाना कोई आपसे सीखे।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी सारगर्भित समीक्षा से रचना को प्रवाह मिला।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
हटाएंवाह! बहुत सुंदरता से जिंदगी का फलसफा बयाँ किया प्रिय अनिता आपने , सही है तुषार कणों सी है ज़िंदगी कभी लुभाती कभी भार है ज़िंदगी ।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
तहे दिल से आभार आदरणीय कुसुम दीदी अपनी मोहक प्रतिक्रिया से सृजन में जान डालने हेतु। आपके आने से अत्यंत ख़ुशी हुई।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर