कहानी के वे अनगिनत पात्र भी
गढ़ लेती है लेखनी
जिनके क़दमों के
जिनके क़दमों के
नाम-ओ-निशान भी नहीं होते
धरती के किसी ओर-छोर पर
धरती के किसी ओर-छोर पर
वह उनमें प्राण फूँकती है
पनाह देती है अपने ही घर में
ज़िंदगी का हिस्सा बनते हैं वे
वो बातें जो कही ही नहीं गईं
शब्द बन गूँजते हैं
कानों में पुकार के जैसे
कानों में पुकार के जैसे
वे बरसात की बूँदों-से होते हैं
जिनका चेहरा नहीं होता
सिर्फ आवाज़ आती हैं
सिर्फ आवाज़ आती हैं
न कोई रंग न कोई रुप
बस पानी की बूँदों-से बरसते हैं
बादल भी गढ़ता हैं
कभी-कभार आकार उनका
वे तारे बन चमकते हैं
झाँकते हैं आसमान से
झाँकते हैं आसमान से
कभी कोहरा बन
अनुभव कराते हैं अपना
सूरज की किरणों के साथ
फिर ओझल हो जाते हैं
फिर ओझल हो जाते हैं
उन किरदारों के हृदय में
सुकून भरती है लेखनी
मिठास भरती है शब्दों में
हँसी की खनक पॉकेट में रखती है
सुनती है मर्मांतक वेदना
फिर भी न जाने क्यों कई
सरहद से घर नहीं लौटते?
कई बाढ़ के बहाव में बह जाते हैं
कई प्लेन क्रेश में दम तोड़ देते हैं
कई बम विस्फोट में
राख का ढ़ेर बन जाते हैं
कई नौकरी न मिलने पर
फंदे से लटक जाते हैं
क़लम उनके पंख लिखना चाहता है
उड़ाना चाहता है परिंदों की तरह उन्हें
परंतु वे वहीं दम तोड़ देते हैं
उड़ान भरने से पहले
एक मौन पुकार के साथ
कभी न मिलने वाली
मदद की उम्मीद के साथ ...।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर प्रणाम
कलम की व्यथा सचमुच गहरी है .., मनोवैज्ञानिक धरातल पर मानव मन की व्यथा कलम के माध्यम से उकेरती हृदयस्पर्शी रचना . बहुत सुन्दर सृजन.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय मीना दीदी अपनत्त्व से सराबोर सारगर्भित समीक्षा हेतु।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसादर प्रणाम
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीदी आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसादर
वाह!सखी ,कलम की व्यथा को सुंदर शब्दों में पिरोया है आपने ....लाजवाब!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंसादर
जीवन की विसंगतियों का चित्रण करती हुई मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति असीम वेदना का प्रवाह उड़ेल रही है। क़लम की वेदना तो यही है कि वह संवेदना के स्वर को सर्वोच्च शिखर पर ले जाती है, मूल्यों की फ़सल को सँजोए रखने के लिए भावभूमि तैयार करती है किंतु वक़्त का सैलाब बहुत कुछ उड़ा ले जाता।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना।
क़लम उर्दू भाषा का लफ़्ज़ है जो पुल्लिंग है। अतः वाक्य में 'हम गढ़ लेती है क़लम' के स्थान पर 'गढ़ लेता है क़लम' लिखें तो शुद्ध रूप होगा।
दरअसल यह भ्रम इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि हिंदी का शब्द 'लेखनी' स्त्रीलिंग है।
सादर आभार आदरणीय सर मार्गदर्शन करने हेतु। आपकी सारगर्भित समीक्षा से रचना को प्रवाह मिला। मनोबल बढ़ाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आपका। बदलाव समझ में नहीं आ रहा कैसे करूँ दिमाग़ ठनक-सा गया है। फिर लेखनी करने का प्रयास करती हूँ।रचना का शीर्षक बदलना ठीक नहीं रहेगा...बदलाव करने का पूरा प्रयास रहेगा।मार्गदर्शन करने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
हटाएंउम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंक़लम उनके पंख लिखना चाहता है
जवाब देंहटाएंउड़ाना चाहता है परिंदों की तरह उन्हें
परंतु वे वहीं दम तोड़ देते हैं
उड़ान भरने से पहले
एक मौन पुकार के साथ
कभी न मिलने वाली
मदद की उम्मीद के साथ ..,,,,,, बहुत सुंदर रचना है,आदरणीया शुभकामनाएँ ।
सादर आभार आदरणीय मधुलिका पटेल जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
कई बम विस्फोट में
जवाब देंहटाएंराख का ढ़ेर बन जाते हैं
कई नौकरी न मिलने पर
फंदे से लटक जाते हैं
क़लम उनके पंख लिखना चाहता है
ओह !!बेहद हृदयस्पर्शी सृजन,कलम में लिखने की शक्ति तो है पर नियति से निपटने की नहीं। कलम की व्यथा को उजागर करती बेहतरीन सृजन अनीता जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
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