सहम-सी जाया करती थी
धूल के कण आँखों में तकलीफ़ बहुत देते
न चाहते हुए भी वे आँखों में ही समा जाते
समय का फेर ही था कि आँधी के बवंडर में छाए
अँधरे में भी किताबें ही थामे रखती थी
हँसने वाले हँसते बहुत थे
विचारों की उलझन शब्दों की कमी
सदा ख़ामोश ही रहती
तब और आज भी मेरी प्रीत पाहुन-सी थी
दोस्ती के चंद सिक्के भी थे मेरी मुठ्ठी में
पहले दादा फिर दादी सास अंत में पापा की
थामी थी अँगुली मैंने
जाने अनजाने में हम बाप-बेटी
अक्सर उम्मीदों की पोटली बदलने लगे
कभी पापा मेरे शीश पर रखते
कभी में पापा को थमा देती
मैं उनका स्वाभिमान भी बनी अभिमान भी
दो रास्ते दो मंज़िलें एक साथ तय करने लगे
संस्काररुपी गहने भी मिले
उम्र से अधिक समझ के मोती भी मिले
संघर्ष की बल्लरी पर सफलता के पुष्प भी खिले
समय के इस मोड़ पर वह अँगुली
आज स्थूल-सी लगी
ज़ुबाँ नहीं आँखें पुकारती-सी लगीं
और मैंने चुप्पी की दीवार गढ़ी उसपर
ज़िम्मेदारी की एक तस्वीर टाँग दी।
@अनीता सैनी'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 06 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर और सारगर्भित।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो आपको।
सादर आभार आदरणीय सर ।
हटाएंप्रणाम
गूढ़ भावों को उकेरता शब्दचित्र।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
हटाएंसादर
वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर! पुरा जीवन चरित्र एक अंतर्मुखी प्रतिभा का जो ज़िम्मेदारियों की पोटली उठाए हैं, पर उस पोटली से साहित्य गंगा सदा झरती रहती है ।
जवाब देंहटाएंसदा प्रगति पथ पर धैर्य पूर्वक बढ़ती रहें साहित्य लेखन भी एक जिम्मेदारी समझ निभाते रहें।
शब्दों का करता वाणी से निकलते ही टूटते हैं बिखर जाते हैं पर जो अक्षर कोरे पन्ने पर अंकित हो जाते हैं वे कभी क्षर नहीं होंगें ।
मौन वाणी का हो लेखनी बोलती रहे ।
सस्नेह
शुभकामनाएं।
आभारी हूँ प्रिय कुसुम दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंअत्यंत हर्ष हुआ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
कृपया करता को 'क्या' पढ़े
जवाब देंहटाएंखामोशी से मौन होकर सब समझते परखते दादा से दादी सास तक पापा की उँगली पकड़े जिम्मेदारियों का बोझ लेकर बिता दिया जीवन सफर...और आगे भी किसी का हमसफर बन किसी को उँगली थमायें चलते जाना है राह की अड़चनों को अनदेखा कर .....क्योंकि मंजिल को ऐसे राहगीरों का इंतजार जो है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.... अनंत शुभकामनाएं प्रिय अनिता जी!
आभारी हूँ प्रिय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुंदर रचना शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका।
सादर प्रणाम
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर प्रणाम
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंमैंने चुप्पी की दीवार गढ़ी उसपर
जवाब देंहटाएंज़िम्मेदारी की एक तस्वीर टाँग दी।
बहुत ही सुंदर कविता,एक कहानी ही गढ़ दी हैं आपने।
ख़ासकर अन्तिम lines तो बहुत ही बढ़िया हैं,
जिम्मेदारी की तस्वीर टाँग दी।
क्या बात है
सादर आभार आदरणीय ज़फ़र जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंआज स्थूल-सी लगी
जवाब देंहटाएंज़ुबाँ नहीं आँखें पुकारती-सी लगीं
और मैंने चुप्पी की दीवार गढ़ी उसपर
ज़िम्मेदारी की एक तस्वीर टाँग दी।
बहुत खूब,बेहद गहरे भाव लिए,बेहतरीन सृजन अनीता जी
तहे दिल से आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत ही भावपूर्ण ..सराहना से परे अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बहुत अच्छा..।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबधाई 💐
कृपया मेरे इस ब्लॉग पर भी पधारें 🙏
https://vichar-varsha.blogspot.com/2020/09/15.html?m=1
तहे दिल से आभार आदरणीय वर्षा दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।मैं जरुर आपके ब्लॉग पर आऊँगी।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
अतीत के खूबसूरत पलों को लौटा लाने की सफल कोशिश में जुटी रचना... हार्दिक बधाई अनीता जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
कई बार बहुत कुछ होता है जो इंसान खुद ही ओढ़ लेता है अपने ऊपर ... अगर वो मजबूरियाँ ण हों तो उन्हें तोड़ देना ही अच्छा होता है .... खामोशी जितना जल्दी टूटे अच्छा है ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर