सोमवार, सितंबर 21

मर्तबान


मर्तबान को सहेज रखती थी रसोई में 
मख़मली यादें इकट्ठा करती थी उसमें मैं 
जब भी ढक्कन हटाकर मिलती उन  से 
उसी पल से जुड़ जाती अतीत के लम्हों से 
चिल्लर जैसे खनकतीं थीं वे यादें दिल में 
एक जाने-पहचाने एहसास के साथ  
उसे छूने पर माँ के हाथों का स्पर्श
 महकने लगता अंतरमन के कोने में 
जब कभी भी वह  हाथ से फिसलता 
डर मुट्ठी में समा हृदय में उतर जाता  
कहीं टूट न जाए ,छूट न जाए 
फिसल न जाए हाथ से मेरे 
माँ का साथ आशीर्वाद समझ 
अनजाने में उससे बातें करने लगी 
गंभीर मुद्रा में वह मेरी बात सुनता 
कभी-कभी माँ का चेहरा उभर आता उसमें 
आज मेरे हाथ से टूट बिखर गया मर्तबान ।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 टिप्‍पणियां:

  1. उस मर्तबान को सहेज
    यादें इकट्ठा करती थी उसमें मैं
    जब भी ढक्कन हटा मिलती उन यादों से
    उसी पल से जुड़ जाती उनसे .....

    मर्मस्पर्शी बहुत सुंदर रचना के लिए साधुवाद अनिता जी !!!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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    2. मार्मिक भावपूर्ण

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    3. सादर आभार आदरणीया अनीता दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  2. कभी-कभी माँ का चेहरा उभर आता उसमें
    आज मेरे हाथ से टूट बिखर गया मर्तबान ।
    हृदयस्पर्शी सृजन.. खुद से खुद ही बातें..., मन में गहरे से उतर गई ।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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    2. आ अनिता सैनी जी, आपके घ्र रचना कुछ अलग हटकर होती हैं। उसमें भी आपने मर्तबान के माध्यम से सोई हुई यादों को जागने पर संवाद स्थापित किया है। सुंदर!--साधुवाद!

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    3. आभारी हूँ आदरणीय आप की प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  4. ममता के रूप अनेक।
    दूर होते हुवे भी बेहद नजदीक होती है माँ... सच।
    मर्मस्पर्शी रचना।

    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रोहिताश जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  5. उत्तर
    1. आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
      सादर आभार

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  6. माँ का साथ आशीर्वाद समझ
    अनजाने में उससे बातें करने लगती
    गंभीर मुद्रा में वह मेरी बात सुनता
    कभी-कभी माँ का चेहरा उभर आता उसमें
    आज मेरे हाथ से टूट बिखर गया वह मर्तबान ।
    ..... सच कुछ वस्तुओं से यादों का मधुर सम्बन्ध सा बन जाता है और फिर माँ की यादें जिससे जुड़ी हों, वह तो अमूल्य धरोहर बन जाती है हमारी

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    1. सस्नेह आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को   "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज"   (चर्चा अंक-3833)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  8. उसे छूने पर माँ के हाथों का स्पर्श
    महकने लगता हवा में
    जब कभी भी वह हाथ से फिसलता
    डर मुट्ठी में समा हृदय में उतर जाता
    कहीं टूट न जाए ,छूट न जाए
    फिसल न जाए हाथ से मेरे
    माँ का साथ आशीर्वाद समझ
    अनजाने में उससे बातें करने लगती
    सच में अपनों के दिये सामानों में भी उनकी यादें बस जाती हैं और इतनी गहराई से बसती हैं कि उस वस्तु से ही अपनों सा लगाव हो जाता है...फिर माँ और माँ से जुड़ी यादों का तो कहना ही क्या...
    मीठी यादों से सजा बेहतरीन सृजन
    वाह!!!

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    1. आभारी हूँ आदरणीया सुधा दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।सस्नेह आभार

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  9. इन मर्तबनो में ही माँ के हाथों के बने खट्टे मीठे मुरब्बे और अचार हुआ करते थे जो अविस्मरणीय स्वाद देते थे
    बहुत बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर उत्साहवर्धन हेतु।
      सादर

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  10. उत्तर
    1. सादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  11. वाह!सखी ,बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शुभा दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  12. कभी-कभी माँ का चेहरा उभर आता उसमें
    आज मेरे हाथ से टूट बिखर गया वह मर्तबान ।
    एक ना एक दिन वो यादों का मर्तबान टूट ही जाता है,बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन अनीता जी

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।

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  13. एकदम गहरे तक उतरते अहसास ।
    जैसे हर एक बेटी के पास ऐसा कुछ होता जरूर है मर्तबान जैसा यादें सहेजने को और उससे बिछड़ने का डर भी बना रहता है सदा न जाने क्यों और ऐसे बिखर जाए तो पता है किरचिंया भी सम्हाल कर रख लेते हैं ।
    खास रचना हृदय के पास ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुसुम दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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