कुछ दौड़ कुछ होड़ हारने की पेपर पर स्याही उड़ेल गलाने की किसानों का निवाला छीनने की थी देह दर्द से टूटी थी आसमान की शब्दों में पीड़ा पनपी थी धरती के प्रसन्नचित जीवन अश्रुपूर्ण लिबास में अंतस अधीर बेचैनी झरता पात थी डर देहरी पर बिस्तर बिछाए बैठा था।
चौराहों की रौनक छीन ली गई
गलियों को उनकी हैसियत बताई
पत्थर पर पैर पल-पल जीवन को
मारने के लिए मजबूर किया गया
सफ़ेद चील ने तजरबा के कान छिदवाए
संस्कार कह रस्मों की माला पहनाई।
2020 का बर्बरतापूर्ण भयावह रुप
दीवारों को चुप्पी की चादर ओढ़ाई
निर्ममता की हदें ढहाता दिमाग़ का पानी
संतोष को निगलता छद्म की अगुवाई में था
क़दमों तले वर्तमान को कुचलता साहिर था।
इंसानों के कलेजे को काट तरक़्क़ी को
तनावमुक्त करने का वादा गढ़ा
विश्व व्यथित घुटन में देश का समीर
विकृति मानव के मस्तिष्क पर सवार
घटनाओं की नहीं यह वर्तमान की पीर थी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!" (चर्चा अंक-3837) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंपहलीबार किसी सैनी का ब्लॉग देखा दीदी।
मैं भी सैनी हूँ।आशा करता हूँ आपको मेरी रचनाएँ पसन्द आएंगी और आपका फॉलो और कमेंट मिलेगा।
बहुत बहुत शुक्रिया अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसफ़ेद चील ने तज़रबा के कान छिदवाए
जवाब देंहटाएंसंस्कार कह रस्मों की माला पहनाई।
गहन व्यथा है
वर्तमान चिंतित है
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत बढ़िया🌻
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंविकृति मानव के मस्तिष्क पर सवार
जवाब देंहटाएंघटनाओं की नहीं यह वर्तमान की पीर थी।
बहुत खूब प्रिय अनीता ! वर्तमान की पीड़ा की सही पड़ताल की है तुमने | सार्थक रचना के लिए शुभकामनाएं|
तहे दिल से आभार आदरणीय रेणु दी मनोबल बढ़ाने हेतु।आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंगहन भाव
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दी
हटाएंआदरणीया अनिता सैनी जी, भावों की गहराई अप्रतिम है। ये पंक्तियाँ: डर देहरी पर बिस्तर बिछाए बैठा था।
जवाब देंहटाएंक्या बात है!--ब्रजेन्द्रनाथ
सादर आभार आदरणीय सर ।
हटाएंइंसानों के कलेजे को काट तरक़्क़ी को
जवाब देंहटाएंतनावमुक्त करने का वादा गढ़ा
विश्व व्यथित घुटन में देश का समीर
विकृति मानव के मस्तिष्क पर सवार
घटनाओं की नहीं यह वर्तमान की पीर थी।
वर्तमान हालातों का बहुत हु सटीक खाका खींचा है आपने...बहुत सुन्दर सार्थक..
वाह!!!
तहे दिल से आभार आदरणीय सुधा दी 🙏
हटाएंअप्रतिम भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी 🙏
हटाएं2020 का बर्बरतापूर्ण भयावह रुप
जवाब देंहटाएंदीवारों को चुप्पी की चादर ओढ़ाई
इस वर्ष की भयावहता और लोगों की मजबूरियों को अपने में समेटे गहन भावों की रचना।
तहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी 🙏
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