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सोमवार, अक्तूबर 12

इंद्रजाल


ऐन्द्रजालिक की भाँति छाया रहता है
घर के कोने-कोने में माया का ओढ़े गुमान।
माया महकती है सदृश्य हर पहर  
हरशृंगार के पावन पुष्प के समान
  
बाँधता नाज़ुक श्वेत धागा अंतस पर 
व्यवहार का हल्की गठान के साथ
मौन साधे आँखों से कुछ कहता 
अहसास संग जोड़ता परिवार का हाथ

नीरवता में भाव बिखेरता हँसता जैसे 
 लहरों को छिपाता आग़ोश में समंदर
भावभीनी चुप्पी में सतरंगी स्वप्न बीनता 
पैरों की जलन बिसराता तपती रेत पर।

कैसे गढ़ता है ज़िंदगी की हवा में जादू 
निश्छल निरीह जीवन पर ऋतुएँ हर्षाईं। 
यादों की एक गठरी उठाए कंधों पर 
चल पड़ा जाने-पहचाने पथ पर हरजाई

दृढ़ शक्ति अथाह विश्वास के बोता बीज 
मन में नेह अँकुरित करता जैसे छलिया
अनंत परिभाषाओं से गढ़ूँ नाम उसका 
 शीतल हवा-सा खिला देता मन कलियाँ

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  2. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक मां की हुंकार..."(चर्चा अंक 3853) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।

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  3. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  4. उत्कृष्ट भावों से सजी लाजवाब अभिव्यक्ति । आपकी लेखनी का जादू यूं ही चलता रहें ।

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    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।

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  5. बेहतरीन रचना अनीता जी।

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  6. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।

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  7. अच्छा लिख रही हो, लिखते रहो |
    बहुत सुन्दर |

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