जब भी मिलती हूँ मैं
शब्दों से परे एक-एक की ख़ामोशी
आँखों के झिलमिलाते पानी में पढ़ती हूँ।
कोरी क़िताब के सफ़ेद पन्ने
पन्नों में हृदय के कोमल भाव
भावों के बिखरे मोती शब्दों से चुनती हूँ।
सूरज की रोशनी चाँद की आभा
कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता
पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन-सा देते
आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।
परिवर्तन के पड़ाव पर जूझती सांसें
सेवा में समर्पित सैनिक बन सँवरतीं हैं
समाज के अनुकूल स्वयं को डालना पढ़ती हूँ।
समय सरहद सफ़र में व्यतीत करती आँखें
आराम आशियाने में ढूँढ़तीं
गैरों से नहीं अपनों से सम्मान की इच्छा पढ़ती हूँ।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
जवाब देंहटाएंनिश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता
पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन का देते
आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...ऐसा लगा जैसे एक आदर्श शब्द चित्र सृजित हो रहा हो आँखों के समक्ष ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु ।
हटाएंसुन्दर और सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकानाएँ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
हटाएंबहुत खूब लिखा अनीता जी, ...सूरज की रोशनी चाँद की आभा
जवाब देंहटाएंकृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता
पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन-सा देते
आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।...वाह
तहे दिल से आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसार्थक सृजन , सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु.
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंउम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसूरज की रोशनी चाँद की आभा
जवाब देंहटाएंकृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
एक संवेदनशील कवि मन हर तरह के मौन और खामोशी को बखूबी पढ़ता है...
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सृजन।
सादर आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंशानदार सर्जन |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ।
हटाएंवाह ! कुछ और पढ़ने की ज़रुरत ही क्या है?
जवाब देंहटाएंढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय !
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर प्रणाम
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 23-10-2020) को "मैं जब दूर चला जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3863 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
दिल से आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत अच्छी व सशक्त रचना है |
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर ।
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