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मंगलवार, अक्तूबर 6

मनोज्ञ रश्मियाँ


मनोज्ञ रश्मियाँ 
समेटने लगी हैं स्वयं को 
भू पर बिखरे 
अतिशयोक्तिपूर्ण आभामंडल से 
विरक्त हो 
ज़िंदगी की दरारें 
वक़्त बे वक़्त चाहती हैं भरना  
जीवन की ऊहापोह से थक 
आज ख़ामोश हैं  
संकुचाई-सी मुरझाई-सी 
दायित्वबोध का करती भान 
कहती हम पाहुन हैं  
  निशा की गोद में सिमटी-सी 
सांसों में  ढूँढ़ती हैं सुकून 
यायावर रुप में ढला जीवन  
क़दमों का चाहती हैं ठहराव
अनमने मन से  हैं  उदास  
सुबह से शाम तक स्वयं में उलझी
यामिनी से मिलने पर भी  
समेटे शब्दों को मौन में 
चिंताग्रस्त स्वयं से क्रुद्ध 
समय पैंतरों से अनजान 
दुखांत हृदय को थामे पलकों से 
पूछती कौन हैं हम ?

@अनीता सैनी  'दीप्ति'

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को   "जीवन है बस पाना-खोना "    (चर्चा अंक - 3847)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पम्मी दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।

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  4. चिंताग्रस्त स्वयं से क्रुद्ध
    समय पैंतरों से अनजान
    दुखांत हृदय को थामे पलकों से
    पूछती कौन हैं हम ?
    हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति👌👌

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    1. दिल से आभारी हूँ मीना दी।आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा ।सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  6. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।

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  7. लेखनी की आभा बिखर रही है । अति सुंदर ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मनोबल बढ़ाने हेतु।

      हटाएं
  8. वक़्त बे वक़्त चाहती हैं भरना
    जीवन की ऊहापोह से थक
    आज ख़ामोश हैं
    संकुचाई-सी मुरझाई-सी
    दायित्वबोध का करती भान
    कहती हम पाहुन हैं
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर, लाजवाब सृजन।

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    1. दिल से आभार आदरणीय सुधा दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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