गुरुवार, अक्तूबर 8

भद्रता


भद्रता ! 
तुम भद्रता नहीं रही हो !
बदल गई हो !
अपनी-सी नहीं रही हो आज!
भटक गई पथ के प्रवाह से या 
ऊँटों के कारवाँ  से कुचली गई हो 
तेज़ धूप में जली 
अनमने स्वरुप में ढल गई  हो आज 
भावों से 
आचरण में उतर प्रभाव को ढोती 
रेत में धँसा
 मात्र एक शब्द बन गई हो आज 
स्वयंसिद्धता दर्शाती 
विचारों में उलझी 
द्वंद्व में पीसी सापेक्ष पीड़ा हो!
मानवीय मूल्यों की 
टूटी कड़ी बन गई हो आज 
भावों का अभाव  
निरंकुशता का दाव 
मानव जीवन गर्हित 
मूर्छित पड़ा राह में 
पैरों से पीसती 
 मौन साधे क्यों बैठी हो आज ?
फूल पत्ते 
नव किसलय में कोरा कंपन 
शुष्क संवेदना 
कृत्य करुणा में क्रंदन 
जीवन आचरण से
 भटक तुम भर्मित हो !
अतृप्त चित्त 
रुष्ट आस्था में रुदन क्यों ? 
परिवर्तन दिशाविहीन खंडित हो !
आख्यान मात्र एक शब्द क्यों?
नहीं रही मानव मन में 
कहाँ है तुम्हारा आधार जीवंत ?
ममता मनः स्थिति 
भाव बन  बिसराई नहीं लाज 
व्यर्थ सुमन कुमोद को संचित जग 
भद्रता !
तुम भद्रता नहीं रही भटक गई हो आज !

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

14 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-10-2020) को "मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी।

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  2. आज सिर्फ़ दिखावे की वस्तु बन गई है.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  3. बहुत ख़ूब अनीता ! एक कड़वी सच्चाई ! आज भद्रता, शालीनता और विनम्रता पृष्ठभूमि में चली गयी हैं और उनकी जगह ले ली है - अभद्र तथा अशिष्ट आक्रामकता ने.
    सफल वही है जो मानवीय संवेदना को भुला निजी स्वार्थ में लिप्त है.

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    1. सादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला। आशीर्वाद बनाए रखे।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  6. भद्रता सच एक शब्द रह गया है शब्द कोष का पर कहीं कहीं दिखती है तो आज के स्मार्ट कहलाने वालों की नजरों में बस एक निरीह की छवि और हँसी का पात्र जितनी हैसियत रखती है।
    बहुत सटीक सुंदर।

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    1. दिल से आभार आदरणीय कुसुम दीदी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।सारगर्भित समीक्षा रचना का मर्म स्पष्ट करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दी आशीर्वाद बनाए रखे।

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