स्वच्छंद आसमान तुम्हारा है
नहीं है पंखों पर बंदिशों की डोर
हवा ने भी साधी है चुप्पी
गलघोंटू नमी का नहीं कोई शोर
व्यथा कहती साहस से
तुम उल्लास बुन सको तो देखो!
समय बदला बदले हैं सरोकार
ऊँघते क़दमों की बदली है तक़दीर
खेत-खलिहान से निकल धूल मिट्टी से सनी
आँखों ने बुने हैं स्वप्न रुपी संसार
मेघाच्छादित गगन गढ़ता है गरिमा
तुम उत्साह उड़ान में भर सको तो देखो!
डैनों में उड़ान संयम बाँधती पंजों से
तिनका-तिनका समर्पित साथी को
मासूम चिड़िया है बहुत नादान
डाल-डाल पर गूँथती आशियाना
घरौंदों में भी सुरक्षित नहीं है गौरिया
तुम कवच बन कठोरकर सको तो देखो!
माँ की हिदायतों में उलझी चहचहाती
कोरे आकाश को घूर-घूर रह जाती
साँझ ढले घर-आँगन में लौट आना
दोपहर में दानव भटकते गलियों में
बारिश में न भीगना तेज़ाब है बरसता
तुम मन को मार रस्सी से बाँध सको तो देखो !
@अनीता सैनी 'दीप्ति '
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दिव्या जी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंउपयोगी और शिक्षाप्रद रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 2 नवंबर 2020) को 'लड़कियाँ स्पेस में जा रही हैं' (चर्चा अंक- 3873 ) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंप्रभावशाली लेखन - - सामाजिक बंधनों में रह कर भी प्रगति पथ में बढ़ने की उत्कंठा मुग्ध करती है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसमय बदला बदले हैं सरोकार
जवाब देंहटाएंऊँघते क़दमों की बदली है तक़दीर ..
सशक्त सृजन ..जीवन पथ के कठोर धरातल को उजागर करती बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।
आभारी हूँ दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
तुम कवच बंध कठोर कर सको तो देखो, हां सभी वर्जनाओं में से उत्साह और उल्लास के साथ आसमान अपनी पकड़ में लेने का साहस तो करना होगा!
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना।
नारी को कह रही है पूछ रही है ,कि उसे बंधन के बीच में से उत्तम राह चुननी है तो फिर देखो कौन कौन सी बाधाएं पार करनी होगी।
श्रेष्ठ सृजन।
दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना। साधुवाद व बधाई आदरणीया अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सराहनीय सृजन
घरौंदों में भी सुरक्षित नहीं है गौरिया
तुम कवच बन कठोरकर सको तो देखो!
सादर आभार आदरणीय दी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर