आँखों पर आँखोड़ा
खुरों में लोहे की नाल को गढ़ा
दौड़नेवाले की पीड़ा का आकलन नहीं
दौड़ानेवाले को प्राथमिकता थी।
क्यों का हेतु साथ था ?
किसने बाँधी विचारों की ये पट्टी ?
प्रश्न का उत्तर ज़बान पर
हाथ में फिर वही प्रश्न था।
ऊँघते हालात का देते तक़ाज़ा
खीझते परिवर्तन के साथ दौड़ना
चुप्पी साधे समझ गंभीरता ओढ़े
बुद्धि का यह खेल अलबेला था।
सदियों पहले जिसने भी बाँधी हो ?
कर्ता-कर्म बदले विचारों का भार वही
समय के साथ रियायत मिली
चमड़े का पट्टा थ्री डी प्रिंट में था।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
लाजवाब।
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंयथावत, प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
इस कविता में भावनात्मक दर्द है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंकवि मन कहां तक सोचता है!!!
एक अश्व को साधने और व्यवहार लेने से पहले उसे कितने बंधन में बांधना होता है,किसने की शुरुआत नहीं पता पर सोच कर बताएं ....
नथनी,बोरला झुमके,कंगन करधनी,पायल बिछिया
घूंघट,के बारे में आप क्या सोचती है।😌
बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया गज़ब के प्रश्न हैं आपके प्रश्न पर
हटाएंयही कि औरत इन सब से ऊपर उठे नथनी,बोरला झुमके,कंगन करधनी,पायल बिछिया
घूंघट अब इनकी आवश्यकता नहीं। जिसने भी यह विचार गढ़ा उसको जवाब दे। बात यहाँ श्रृंगार की नहीं उन विचारों की हैं जो व्यक्ति विशेष पर लादे गए है।
आपको आपके प्रश्नो के उत्तर स्वतः ही मिल जाएंगे।
एक पीड़ित की पीड़ा का अनुभव कर लिखना आसान है उसी पीड़ा को अगर कोई जीने को कहे...।
नथनी,बोरला झुमके,कंगन करधनी,पायल बिछिया... एक उम्र के बाद नहीं भाते परंतु नवेली दुल्हन के पास अगर नहीं हैं आजीवन वह इनके लिए तड़पती रहती है। एक कमी जिसका एहसास जरुरी ही नहीं वह आजीवन करती है। सक्षम और अक्षम की खाई बहुत गहरी है।
बहुत अच्छा लगता अगर आप रचना का मूल भाव समझ पाते।
सादर प्रणाम
बहुत सार्थक। विडम्बना है यह।
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
वाह... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
आपकी यह उत्कृष्ट कविता बहुत देर से पढ़ी अनीता जी । आपके विचार सारगर्भित हैं जिनकी व्याख्या एक से अधिक प्रकार से की जा सकती है तथा जिन्हें एक से अधिक संदर्भों में समझा जा सकता है । बहुत अच्छा लगा पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर