कौन हूँ मैं ?
पुकारने पर यही प्रश्न
लौट आता है।
स्वयं को जैसे आज
भूल चुकी हूँ।
ज़रुरत कहूँ कि ज़िम्मेदारी
या नियति का खेल।
कभी-कभी मैं एक
पिता का लिबास पहनती हूँ
कि अपने बच्चों की
ज़रूरतों के लिए दौड़ सकूँ।
कभी-कभी ख़ामशी ओढ़े
मूर्तिकार का लिबास पहनती हूँ।
कलेजे पर पत्थर रख
उन्हें दिन-रात तरासती हूँ।
कभी-कभी ही सही
कुछ देर के लिए
मैं एक माँ का लिबास पहनती हूँ ।
उन्हें ख़ूब लाड़ लड़ाती हूँ।
सरल स्वभाव के साथ
प्रेम का मुखौटा लगाती हूँ।
अपनी माँ को यादकर
उसके पदचिह्नों पर चलती हूँ
कि अपने बच्चों के लिए
ख़रीद सकूँ ख़ुशियाँ।
कभी-कभी मैं
ज़मीन से भी जुड़ती हूँ
खेतिहर की तरह।
ख़ूब मेहनत करती हूँ
कि पिता-पति के लिए ख़रीद सकूँ
मान-सम्मान और स्वाभिमान।
परंतु फिर अगले ही पल
स्वयं से यही पूछती हूँ
कौन हूँ मैं ?
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
पिता-पति के लिए ख़रीद सकूँ
जवाब देंहटाएंमान-सम्मान और स्वाभिमान..।सुंदर अभिव्यक्ति..।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया जिज्ञासा जी।
हटाएंसृजन सार्थक हुआ।
सादर
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
आपकी पंक्तियाँ दिल की गहराइयों में उतरती जाती हैं असंख्य प्रश्नों के साथ, और हर बार निरुत्तर कर जाती हैं, आप बहुत सुन्दर व हृदयस्पर्शी लिखती हैं जिसे एक ही शब्द में ग़र कहा जाए - - तुलना विहीन - - साधुवाद व नमन सह।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
सरल स्वभाव के साथ
जवाब देंहटाएंप्रेम का मुखौटा लगाती हूँ।
अपनी माँ को यादकर
उसके पदचिह्नों पर चलती हूँ
कि अपने बच्चों के लिए
ख़रीद सकूँ ख़ुशियाँ।
यथार्थ,अनुभवशील
सुन्दर
आभारी हूँ आदरणीया सधु चंद्र जी। प्रतिक्रिया क्रिया से सृजन को परवाह मिला।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,अद्भुत !
जवाब देंहटाएंदिल से आभारी हूँ प्रिय दी स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बेहतरीन और बस..बेहतरीन..!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंज़रुरत कहूँ कि ज़िम्मेदारी
जवाब देंहटाएंया नियति का खेल।
कभी-कभी मैं एक
पिता का लिबास पहनती हूँ
कि अपने बच्चों की
ज़रूरतों के लिए दौड़ सकूँ।
पिता की अनुपस्थिति में माँ अपने बच्चों के लिए पिता भी बन जाती है हर मुश्किलों का सामना बड़े साहस से कर अपने अनेको रूपों का परिचय देती है इसीलिए कहा गया है "नारी एक रूप अनेक"
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!!
दिल से आभार प्रिय सुधा दी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन का मर्म स्पष्टकर चार चाँद लगा दिए है।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आभारी हूँ सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
जिम्मेदारियाँ निभाते-निभाते ख़ुद को सचमुच भूल जाती हैं स्त्रियाँ कि वे कौन है. बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया डॉ.जेन्नी शबनम दी।प्रतिक्रिया ने सृजन को और निख़ार दिया।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर
यक्ष प्रश्न है यह जिसका उत्तर ही नहीं है ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अमृता दी मनोबल बढ़ाने हेतु.
हटाएंसादर
घर परिवार को समर्पित नारी का ये प्रश्न सदियों से चला आ रहा है कौन हूं मैं___
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी की नीर भरी दुख की बदली या फिर प्रसाद जी की नारी तुम केवल श्रद्धा हो___
बहुत सुंदर गहन भाव सृजन।
दिल से आभार प्रिय कुसुम दी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया मेरा संबल है स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
मार्मिक व भावपूर्ण रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
अनिता दी, यह सवाल सदियो से नाई के मन मे है कि कौन हूं मैं। बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय ज्योति बहन।आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिली।
हटाएंकलेजे पर पत्थर रख
जवाब देंहटाएंउन्हें दिन-रात तरासती हूँ।
कभी-कभी ही सही
कुछ देर के लिए
मैं एक माँ का लिबास पहनती हूँ ।
उन्हें ख़ूब लाड़ लड़ाती हूँ।
बहुत शानदार अनीता |
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
नारी मन की अंतर यात्रा।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।