गाँव के बाहर पीपल के नीचे
अँधेरी रात में ओढ़े चाँदनी कंधों पर
मुखमंडल पर सजाए सादगी की आभा
शिलाओं को सांत्वना देता-सा लगा।
मुँडेर पर बैठा उदास भीमकाय पहर
सूनेपन की स्याह काली रात में बदला लिबास
षड्यंत्र की बू से फुसफुसाती पेड़ की टहनियाँ
गाँव का एक कोर जलाता-सा लगा।
मूँदे झरोखों से झाँकती बेकारी की दो आँखें
ज़माने के ज़हरीले धुँए का काजल लगाए
मनसा की मिट्टी से लीपता मन की दीवार
सपनों को चुराता चतुर लुटेरा-सा लगा।
प्रभाव प्रभुत्त्व समय के सितारों का साथ
नासमझ ग्वाले उनकी समझ के दोनों हाथ
कंबल में छिपाए सिक्के उनकी खनक
छद्म वाक्चातुर्यता ओढ़े ठगी वंचक-सा लगा।
प्रभात की आँखों से निकलते लाचारी के रेसे
साँझ के हृदय में पनपती उम्मीद से लिपटते
सिमटती माया का सिलसिला समय अंतराल में
ठग चेहरा दाढ़ी में छुपाता-सा लगा।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर आभार अनुज।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल से आभार दिव्या जी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंप्रभात की आँखों से निकलते लाचारी के रेसे
जवाब देंहटाएंसाँझ के हृदय में पनपती उम्मीद से लिपटते
सिमटती माया का सिलसिला समय अंतराल में
ठग चेहरा दाढ़ी में छुपाता-सा लगा। आपकी रचनाओं में साहित्यिक गंभीरता है, जो काव्य में सार्थकता का संचार करती है, जो बहुत काम लोगों में पायी जाती है - - साधुवाद नमन सह।
आभारी हूँ सर सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु। आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
मुँडेर पर बैठा उदास भीमकाय पहर, सपनों को चुराता चतुर लुटेरा,प्रभात की आँखों से निकलते लाचारी के रेसे.... बहुत ही अलग एवं अनोखी उपमाओं और रूपकों से सजी गंभीर रचना।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीया मीना दी आपकी प्रतिक्रिया ने रचना के मर्म को निखारा। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 9 नवंबर 2020 को 'उड़ीं किसी की धज्जियाँ बढ़ी किसी की शान' (चर्चा अंक- 3880) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभारी हूँ सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंबेहतरीन रचना !!!
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीया शरद दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसारदा
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
मनसा की मिट्टी से लीपता मन की दीवार
जवाब देंहटाएंसपनों को चुराता चतुर लुटेरा-सा लगा।
बहुत सुन्दर शब्द शिल्प में सजी लाजवाब रचना ।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर