गुरुवार, दिसंबर 17

कशमकश की सीलन


 तुम बहुत मजबूर हो!

दरख़्त के तने का खुरदरापन 

दर्शाता है कशमकश की सीलन

शाख़ पर झूलती ज़िम्मेदारी

समय से पहले पत्तों का पीलापन 

बात यहीं से शुरु करनी चाहिए।


हम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव 

उस पर बने पक्षियों के आशियाने

महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल

टहनियों से नाज़ुक संबंधों को 

अब विचारों के फटे  कंबल से

थकते अहसास झाँकने लगे हैं।


प्रेम की पगडंडियों से परे हम

पहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर

झंझावातों  के काँटे कुरेदते-कुरेदते

उलझनों के घने कोहरे में विलीन 

चलने लगे हैं नींद के पैरों से

समझौते की सड़क के किनारे-किनारे।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

37 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  2. "झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते
    उलझनों के घने कोहरे में विलीन
    चलने लगे हैं नींद के पैरों से"
    --
    बहुत संवेदनशील रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. हम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव

    उस पर बने पक्षियों के आशियाने

    महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल

    टहनियों से नाज़ुक संबंधों को

    अब विचारों के फटे कंबल से

    थकते अहसास झाँकने लगे हैं।..भावपूर्ण सार लिए सुंदर रचना..।

    जवाब देंहटाएं
  4. टहनियों से नाज़ुक संबंध। वाह! सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रेम की पगडंडियों से परे हम

    पहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर

    झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते

    उलझनों के घने कोहरे में विलीन

    चलने लगे हैं नींद के पैरों से

    समझौते की सड़क के किनारे-किनारे

    सही कहा अब उम्र के इस दौर में अहसासात बदल रहे है....बहुत ही सुन्दर गहन भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. गहरी संवेदनाओं को समेटे मन की अव्यक्त पीड़ा जैसे लेखनी से व्यक्त होना चाहती हो, एहसासों से लबरेज अप्रतिम लेखन।
    भावों की गहनता लिए सुंदर सृजन।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रेम की पगडंडियों से परे हम

    पहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर

    झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते

    उलझनों के घने कोहरे में विलीन

    चलने लगे हैं नींद के पैरों से

    समझौते की सड़क के किनारे-किनारे। आपकी रचनाएँ बहुत ही मर्मस्पर्शी होती हैं, कुछ पलों के लिए निःशब्द कर जाती हैं - - साधुवाद, आदरणीया अनीता जी - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ सर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  8. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत ही खूबसूरत भावों से सजा सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  9. हम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव

    उस पर बने पक्षियों के आशियाने

    महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल

    टहनियों से नाज़ुक संबंधों को

    अब विचारों के फटे कंबल से

    थकते अहसास झाँकने लगे हैं।


    बेहद दिलचस्प और हृदयग्राही पंक्तियां
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. मजबूरियां ... रिश्तों का बोझ .... और भी बहुत कुछ है जो भुला देता है मधुर यादों का कारवां ... अच्छे कर्मों की याद ... वर्तमान का खुर्दापन ही रहता है याद हमेश ... गहरे भाव ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      हटाएं
  11. 'उलझनों के घने कोहरे में विलीन चलने लगे हैं नींद के पैरों से
    समझौते की सड़क के किनारे-किनारे' । मन को गहराई से छू गई आपकी ये पंक्तियां अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  13. Beautiful penned ✍️✍️📝📝📚📚🖋️🖋️🙏🙏

    जवाब देंहटाएं