बहुत दिनों से बहुत ही दिनों से
सुराही पर मैं तुम्हारी यादों के
अक्षर से विरह को सजा रही हूँ
छन्द-बंद से नहीं बाँधे उधित भाव
कविता की कलियाँ पलकों से भिगो
कोहरे के शब्द नभ-सा उकेर रही हूँ।
उपमा मन की मीत मिट्टी-सी महकी
रुपक मौन ध्वनि सप्त रंगों-सा शृंगार
यति-गति सुर-लय चितवन का क़हर
अक्षर-अक्षर में उड़ेला मेघों का उद्गार
शीतल बयार स्मृतियों के पदचाप
मरु ललाट पर छाँव उकेर रही हूँ।
प्रीत पगे महावर संग मेहंदी का लेप
काँटों की पीड़ा कलियों से छिपाती
अनंत अनुराग भरा घट ग्रीवा तक
जगत उलाहना हँस-हँस लिखती
किसलय पथ उपहार जीवन का
वेदना उन्मन चाँद की उकेर रही हूँ।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
अक्षर-अक्षर में उड़ेला मेघो का उद्गार
जवाब देंहटाएंशीतल बयार स्मृतियों के पदचाप
मरु ललाट पर छाँव उकेर रही हूँ।...अत्यंत सुंदर विरह रचना। शुभकामनाएं आदरणीया अनीता सैनी जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय ज्योति बहन।
हटाएंसादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
वाह बहुत ही खूबसूरत
जवाब देंहटाएंदिल से आभार बहना।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दिव्या जी संध्या दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
पद्य साहित्य के विभिन्न रूपों को सुंदर प्रतीक आधार बना कर अलग तरह की की व्यंजनाओं से सजी सुंदर रचना ,बस कुछ उदासी समेटे।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अभिनव।
दिल से आभार प्रिय दी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
हटाएंसादर
उपमा मन की मीत मिट्टी-सी महकी
जवाब देंहटाएंरुपक मौन ध्वनि सप्त रंगों-सा शृंगार
यति-गति सुर-लय चितवन का क़हर
अक्षर-अक्षर में उड़ेला मेघों का उद्गार
शीतल बयार स्मृतियों के पदचाप
मरु ललाट पर छाँव उकेर रही हूँ...सुंदर छंदों से सुशोभित मनोहारी कृति
दिल से आभार प्रिय बहना।
हटाएंसादर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 दिसंबर 2020 को 'होंगे नूतन साल में, फिर अच्छे सम्बन्ध' (चर्चा अंक 3929) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
प्रीत पगे महावर संग मेहंदी का लेप
जवाब देंहटाएंकाँटों की पीड़ा कलियों से छिपाती
अनंत अनुराग भरा घट ग्रीवा तक
जगत उलाहना हँस-हँस लिखती
किसलय पथ उपहार जीवन का
वेदना उन्मन चाँद की उकेर रही हूँ।
विरहिणी की वेदना को संवेदना तक न मिले....सारे दर्द और उलाहना बस चुप सहने की बेबसी....आह!उन्मन चाँद की बेदना....
क्या बात...
लाजवाब सृजन
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंकलियाँ पलकों से भिगो
जवाब देंहटाएंकोहरे के शब्द नभ-सा उकेर रही हूँ।
शबनमी शब्दों में लिखी कविता मुग्ध करती है - - नमन सह।
प्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
जवाब देंहटाएंसुराही के जरिए बहुत सुंदर प्रेम कविता गढ़ दी है आपने। अत्यंत कोमल भावनाओं की कसी हुई बुनावट वाली इस कविता में आपने जो भाव पिरोए हैं, वे श्लाघनीय हैं।
बहुत शुभकामनाओं और स्नेह सहित,
- डॉ. वर्षा सिंह
छन्द-बंद से नहीं बाँधे उधित भाव
जवाब देंहटाएंकविता की कलियाँ पलकों से भिगो
कोहरे के शब्द नभ-सा उकेर रही हूँ।
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचना...
हार्दिक बधाई !!!- डॉ. शरद सिंह
वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूबसूरती से भावों को उकेरा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंप्रेम भरे हृदय को इसी चुप- सी आशा का बन्धन ही विरह में टूटकर अकस्मात बिखर जाने से प्राय: रोके रहता है । अति सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी 👌
जवाब देंहटाएंअक्षर-अक्षर में उड़ेला मेघो का उद्गार
जवाब देंहटाएंशीतल बयार स्मृतियों के पदचाप।
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।
बहुत दिनों से बहुत ही दिनों से
जवाब देंहटाएंसुराही पर मैं तुम्हारी यादों के
अक्षर से विरह को सजा रही हूँ
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बरबस मन वाह ...वाह कह उठा
जवाब देंहटाएं'सुराही पर मैं तुम्हारे यादों के अक्षर से विरह को सजा रही हूं'👌👌💐💐
विरह श्रृंगार के भावों से सम्पन्न अति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी, कविता की कलियाँ पलकों से भिगो
जवाब देंहटाएंकोहरे के शब्द नभ-सा उकेर रही हूँ। ...कविता का इतना वृहद भाव और कल्पना का इतना बड़ा संसार रच दिया आपने...वाह
बहुत बढ़िया लिखा । बधाई ।
जवाब देंहटाएंSurahee se gehraee liye kaavya
जवाब देंहटाएंहर शब्द कुछ कहता सा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
शुभकामनाएँ बहुत बहुत । फिर पढ़ कर अच्छा लगा ।
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