तुम अपने पैरों की तरफ़ मत देखो
मैं कहती हूँ न बार-बार मत देखो
तुम चाँद-सितारों की बातें करो
पगडंडियों पर बिछी ओस की उलझन कहो
देखो ! तुम्हें देख कैसे मुस्कुराते हुए
धीरे-धीरे चाँदनी बरसता चलता है चाँद।
तुम प्रेम की मीठी-मीठी बातें करो
ख़ुबसूरत हर्षाते लम्हों की बातें करो
गेहूँ सरसों से लहराते खेतों की बात कहो
खेत में खड़े व्याकुल बिजूका की व्यथा
उसके साथ गुनगुनाए गीत सुनाओ
मैंने कहा न अपने पैरों को मत देखो l
देखो ! नील मणि-सा नीला आसमान
सफ़ेद लिबास में इस पर दौड़ते अबोध छौने
तुम प्रेम के सागर में आँखें मूँद डूब जाओ
देखो! अपने पैरों से ध्यान हटाओ तुम
मैंने कहा न ध्यान हटाओ
अभी-अभी टूटी हैं बेड़ियाँ पैरों से
स्याही से लिखे फ़रमान की बातें न कहो तुम।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 04-12-2020) को "उषा की लाली" (चर्चा अंक- 3905) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत-बहुत शुक्रिया मीना दी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसुन्दर काव्याभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंअभी-अभी टूटी हैं बेड़ियाँ पैरों से
जवाब देंहटाएंस्याही से लिखे फ़रमान की बातें न कहो तुम। प्रभावशाली लेखन।
आभारी हूँ सर ।प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर
अभी-अभी टूटी हैं बेड़ियाँ पैरों से
जवाब देंहटाएंस्याही से लिखे फ़रमान की बातें न कहो तुम।
बिल्कुल सटीक व्यंग...।आसमान में देखो समर्थ और सम्पन्नता को देखो ...गरीबों को असमर्थ को क्यों देखना और क्यों दिखाना....कमजोरियाँ दिख गयी तो जनता जाग जायेगी और फिर तुम एक पल में अर्श से फर्श पर होंगे...।
लाजवाब सृजन
वाह!!!
दिल से आभार आदरणीय सुधा दी ।आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बहुत सरस मधुर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
हटाएंगहन एवं सार्थक कृति...।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आपका ।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंटूटी बेड़ियों के निशान भी बीते दर्द की याद दिलायेगा
जवाब देंहटाएंइसलिए पैरों को देखो मत आसमान की ओर देखो..
या फिर यथार्थ से मुंह मोड़ कर महत्वाकांक्षा के विशाल आकाश में उड़ने का साहस करो ..
दोनों ही अर्थों में लाजवाब।
दिल से आभार प्रिय दी सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर