Powered By Blogger

रविवार, जनवरी 10

बिछोह


बड़े दिनों बाद आवाज़ लगाई 
सूखे पत्तों से सजे आँगन ने
बाहें फैलाए  स्मृतियाँ 
स्वागत में प्रीत दीप जलाए 
वात्सल्य वीरानियों में
दहलीज़ पर सीलन अपनेपन की 
दीवारों की दरारों से झाँकता स्नेह
मन की आवाज़ में मैं बह चली
घर के सामने गली के नुकड़ पर
छोटा-सा नीम का पेड़ अब 
बड़ा हो अँग्रेज़ी बोलने लगा
विशाल टहनियाँ मुस्कुराती
कुछ कहकर लहराने लगतीं  
मैं उसकी यादों को छिपाती
दिखावे की व्यस्तता से
फुटकर हँसी सम्पन्नता के शृंगार से 
मन के दरीचों पर
आवरण करती यवनिका से
कि मन पटल पर बिछोह उभर न आए
फिर आज मन की आवाज़ में बह चली मैं?

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

36 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 11 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  2. ''छोटा-सा नीम का पेड़ अब बड़ा हो अँग्रेज़ी बोलने लगा....''
    बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं

  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 11 जनवरी 2021 को 'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  4. मनोभावों की बहुत सुन्दर प्रस्तुति।।
    विश्व हिन्दी दिवस की बधाई हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

      हटाएं
  5. सुन्दर सृजन। विश्व हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
      सादर

      हटाएं
  7. लाख छुपाएं या दबाएं या फिर खुद को बहलाएं पर यह बिछोह .... आह !

    जवाब देंहटाएं
  8. दहलीज़ पर सीलन अपनेपन की
    दीवारों की दरारों से झाँकता स्नेह एक अलहदा सा अंदाज़ एक अलग सा मिठास - - बहुत मनमोहक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह बेहतरीन सृजन

    जवाब देंहटाएं
  11. अनीता , तुम्हारे इस अंग्रेज़ी बोलने वाले नीम के पेड़ से हम क्या दातून की जगह टूथ ब्रश तोड़ सकते हैं?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  12. –सुन्दर भावाभिव्यक्ति..

    जो सदैव
    नीम का दातुन
    उपयोग करते हैं
    उनपर विष का
    असर नहीं होता है

    –फिर क्यों स्वभाव विषैला हो गया
    अक्सर सोचती गुम रहती हूँ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  13. वा...व्व...अनिता,नीम का पेड़ भी अंग्रेजी बोलने लगा!बहुत सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति बहन।
      सादर

      हटाएं
  14. स्मृतियाँ आतुर रहती हैं अपने में समेटने में ...
    कर खुद इसमें खीचें जाते हैं पता नहीं चलता ... भावपूर्ण लेखन ...

    जवाब देंहटाएं
  15. सुन्दर सरस एवं अपनत्व भरे भावों से ओतप्रोत रचना.. यादें..जिनका कोई सानी नहीं..

    जवाब देंहटाएं
  16. मन की अनुभूतियां सरिता के प्रवाह की भांति सहज रूप से बह चली हैं आपकी इस अभिव्यक्ति में । बहुत सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

      हटाएं