बड़े दिनों बाद आवाज़ लगाई
सूखे पत्तों से सजे आँगन ने
बाहें फैलाए स्मृतियाँ
स्वागत में प्रीत दीप जलाए
वात्सल्य वीरानियों में
दहलीज़ पर सीलन अपनेपन की
दीवारों की दरारों से झाँकता स्नेह
मन की आवाज़ में मैं बह चली
घर के सामने गली के नुकड़ पर
छोटा-सा नीम का पेड़ अब
बड़ा हो अँग्रेज़ी बोलने लगा
विशाल टहनियाँ मुस्कुराती
कुछ कहकर लहराने लगतीं
मैं उसकी यादों को छिपाती
दिखावे की व्यस्तता से
फुटकर हँसी सम्पन्नता के शृंगार से
मन के दरीचों पर
आवरण करती यवनिका से
कि मन पटल पर बिछोह उभर न आए
फिर आज मन की आवाज़ में बह चली मैं?
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 11 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
''छोटा-सा नीम का पेड़ अब बड़ा हो अँग्रेज़ी बोलने लगा....''
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 11 जनवरी 2021 को 'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
मनोभावों की बहुत सुन्दर प्रस्तुति।।
जवाब देंहटाएंविश्व हिन्दी दिवस की बधाई हो।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन। विश्व हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
सुंदर मनहर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
हटाएंसादर
लाख छुपाएं या दबाएं या फिर खुद को बहलाएं पर यह बिछोह .... आह !
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय दी।
हटाएंसादर
वाह वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
दहलीज़ पर सीलन अपनेपन की
जवाब देंहटाएंदीवारों की दरारों से झाँकता स्नेह एक अलहदा सा अंदाज़ एक अलग सा मिठास - - बहुत मनमोहक सृजन।
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार बहना।
हटाएंसादर
वाह बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
अनीता , तुम्हारे इस अंग्रेज़ी बोलने वाले नीम के पेड़ से हम क्या दातून की जगह टूथ ब्रश तोड़ सकते हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
–सुन्दर भावाभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंजो सदैव
नीम का दातुन
उपयोग करते हैं
उनपर विष का
असर नहीं होता है
–फिर क्यों स्वभाव विषैला हो गया
अक्सर सोचती गुम रहती हूँ..
दिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
वा...व्व...अनिता,नीम का पेड़ भी अंग्रेजी बोलने लगा!बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ज्योति बहन।
हटाएंसादर
स्मृतियाँ आतुर रहती हैं अपने में समेटने में ...
जवाब देंहटाएंकर खुद इसमें खीचें जाते हैं पता नहीं चलता ... भावपूर्ण लेखन ...
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
सुन्दर सरस एवं अपनत्व भरे भावों से ओतप्रोत रचना.. यादें..जिनका कोई सानी नहीं..
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसादर
मन की अनुभूतियां सरिता के प्रवाह की भांति सहज रूप से बह चली हैं आपकी इस अभिव्यक्ति में । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर